Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१५६ पुण्यात्रवकथाकोशम्
[४-६, ३१ : मधिकं दत्त्वा गतश्चित्रकूटं दक्षिणं निक्षिप्यावन्तिषु प्रविष्टः । तत्र च निर्मनुष्याणि पक्षक्षेत्राणि दृष्टा केनचित्पृष्टेनोक्तम्- अत्रैवोजयिन्यां राजा सिंहोदरो राशी श्रीधरा तन्महासामन्तेन वज्रकर्णेन दशपुराधिपतिनैकदा पापर्द्धिगतेन मुनिमालोक्य विवादं कृत्वा व्रतानि गृहीतानि जैनं विनान्यस्य नै नमस्कारकरणं च गृहीतम् । मुद्रिकायां जिनबिम्ब प्रतिष्ठाप्य प्रवर्तमान श्रुत्वा राक्षा कोपात्तदाबानार्थ राजादेशः प्रेषितः। आगमिष्यति न वेति सचिन्तो राजा शय्यागृहे देव्या चिन्ताकारणं पृष्टः । कथितं वृत्तान्तम् । देवीकर्णपूरचोरणार्थमागतासंयतसम्यग्दृष्टिविद्युदण्डेन श्रुत्वा निर्गत्य मार्गे आगच्छते वज्रकर्णाय निरूपितम् । सोऽपि स्वपुरं गत्वा सामन्या स्थितम् इति श्रुत्वा सिंहोदरस्तत्पुरं गत्वा सामन्या वेष्टयित्वा तिष्ठतीति । श्रुत्वा रामेण कटिमेखलां निरूपितपुरुषो भ्रात्रा निजकटको च दत्त्वा प्रेषितः । स्वयं गत्वा तत्पुरबाह्यचन्द्रप्रभजिनालयं प्रविष्टाः । प्रविशता" वनकर्णेन दृष्ट्वा दृष्टपूर्वा इति रसवती
उसे स्वीकार नहीं किया । उन्होंने बारह वर्षों में दो वर्ष और बढ़ाकर चौदह वर्षमें अपने अयोध्या आनेका वचन दिया। तत्पश्चात् वे आगे चल दिये और चित्रकूटको दक्षिणमें करके अवन्ति देशके भीतर प्रविष्ट हुए । वहाँ उन्होंने पके हुए खेतोंको मनुष्योंसे रहित देखकर किसीसे इसका कारण पूछा । उसने उत्तर दिया कि इसी उज्जयिनी नगरीमें सिंहोदर नामका राजा राज्य करता है। उसकी पत्नीका नाम श्रीधरा है । उसके एक वज्रकर्ण नामका महासामन्त है जो दशपुर (दशांगपुर) का स्वामी है । वह एक समय शिकारके लिए वनमें गया था । वहाँ उसने किसी मुनिको देखकर उनके साथ विवाद किया। तत्पश्चात् उनसे प्रभावित होकर उसने व्रतोंको ग्रहण कर लिया। साथ ही उसने एक यह भी प्रतिज्ञा की कि मैं जैनको छोड़कर किसी दूसरेको नमस्कार नहीं करूँगा । इसके लिए वह मुद्रिकामें जिनप्रतिमाको प्रतिष्ठित कराकर नमस्कार क्रियामें प्रवृत्त होने लगा। इस बातको सुनकर राजाको क्रोध उत्पन्न हुआ। तब उसने वज्रकर्णको बुला लानेके लिए आज्ञा देकर राज कर्मचारीको भेजा। वह आवेगा या नहीं, इस चिन्तासे व्यथित होकर सिंहोदर स्वयं शय्याके ऊपर पड़ गया। रानीने जब उसकी चिन्ताका कारण पूछा तब उसने रानीसे उक्त वृत्तान्त कह दिया। इसी बीच एक विद्युदण्ड नामका असंयतसम्यग्दृष्टि चोर रानीके कर्णफूलको चुरानेके लिए राजभवन में आया था। उसने इस वृत्तान्तको सुन लिया। तब उसने राजभवनसे बाहर निकलकर मार्गमें आते हुए वज्रकर्णसे वह सब वृत्तान्त कह दिया। इस बातको सुनकर वज्रकणे भी अपने नगरमें वापिस जाकर सामग्री (सेना आदि ) के साथ स्थित हो गया । जब सिंहोदरको यह ज्ञात हुआ तब उसने सेनाके साथ जाकर वज्रकर्णके नगरको घेर लिया है। [इसलिये नगरके भीतर इस समय मनुष्योंके न रहनेसे ये पके हुए खेत मनुष्योंसे रहित हैं। ] उपर्युक्त पुरुषसे इस वृत्तान्तको सुनकर उसे रामने करधनी और लक्ष्मणने अपने दोनों कड़े देकर वापिस भेज दिया। तत्पश्चात् वे स्वयं उस नगरके बाह्य भागमें स्थित चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रके मन्दिरमें गये । उन्हें मन्दिरके भी र जाते हुए जब वज्रकर्णने देखा तब उसे ऐसा भान हुआ कि मैंने इन्हें कहीं
१. पश'च' नास्ति । २. ब 'गहीतानि' नास्ति । ३.ब 'न' नास्ति । ४. ब नमस्काराकरणं । ५. पश वर्तमानं । ६. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श आगमिष्यतीति । ७. ब स्थिता । ८. बस्तत्पुरं वेष्टयित्वा । ९. ब रामेण निरूपितपुरुषो ब्रतानि कटकौ । १०. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श बाह्य जिनालयं चन्द्रप्रभस्य प्रविष्टाः । ११. फ ब प्रविशन्तो।
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