Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१६२ पुण्यात्रवकथाकोशम्
[५-१, ३४: विपुलविमलसौख्यो वैश्यपुत्रो यतोऽभू
दुपवसनमतोऽहं तत्करोमि त्रिशुद्ध्या ॥१॥ अस्य कथा- अत्रैवार्यखण्डे मगधदेशे कनकपुरै राजा जयंधरो राशी विशालनेत्रा पुत्रः श्रीधरो महाप्रतापी मन्त्री नयंधरः। स च राजैकदास्थाने समस्तजनेनासितस्तदानेकदेशपरिभ्रमता वासवनाम्ना तत्सखेन रत्नोपायनस्योपरि कृत्वा चित्रपट आनीय दर्शितः। रांजा तं प्रसार्यावलोकयन् तत्र स्थितं कन्यारूपं विलोक्यात्यासक्तो भूत्वा वणिजं पृच्छति स्म कस्याः रूपमिदमिति । स आह-सुराष्ट्रदेशे गिरिनगरेशः श्रीवर्मा देवी श्रीमती पुत्रो हरिवर्मा पुत्री पृथ्वी, तस्या रूपमिदं तवेष्टयं भवति नो वेति तव चित्तपरीक्षार्थमानीतमिति । तदनु राशा स एव कन्यावरणार्थमुत्तमप्राभृतेन समं प्रस्थापितः। स च जगाम, श्रीवर्माणं ददर्श प्राभृतं समर्प्य विज्ञापयांचकार- मत्स्वामी मगधदेशेशो युवातिरूपवान् प्रतापी जैनः सर्वकलाकुशलस्त्यागी भोगी महामण्डलेश्वर आत्मार्थ त्वत्पुत्रीं याचितुं मां प्रेषितवानिति । ततः श्रीवर्मातिसंतुष्टः स्वप्रधानैर्वासवेन समं तन्निमित्तं तां यापयामास । तदागमनमाकर्ण्य
लोकमें पूज्य, पापका नाशक और इन्द्रियोंका दमन करनेवाला है; उसके करनेसे चूँकि वैश्यका पुत्र निर्मल एवं महान् सुखका उपभोक्ता हुआ है, अतएव मैं मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक उसे करता हूँ ॥१॥
इसकी कथा इस प्रकार है--- इसी आर्यखण्डके भीतर मगध देशमें कनकपुर नामका नगर है। वहाँ जयंधर नामका राजा राज्य करता था। रानीका नाम विशालनेत्रा था। उनके एक श्रीधर नामका महाप्रतापी पुत्र था। राजाके मन्त्रीका नाम नयंधर था। वह राजा एक समय समस्त जनोंके साथ सभाभवनमें बैठा हुआ था। उस समय उसका वासव नामक मित्र अनेक देशोंमें पर्यटन करके वहाँ आया। उसने उपहार स्वरूप लाये हुए रत्नोंके ऊपर एक चित्रपटको करके उसे राजाके लिए दिखलाया । राजाने जब उसे खोलकर देखा तो उसमें एक सुन्दर कन्याका रूप अंकित दिखा। उसे देखकर राजाके लिये उक्त कन्याके विषयमें अतिशय अनुराग हुआ। तब उसने उस व्यापारीसे पूछा कि यह किस कन्याका चित्र है ? व्यापारी बोला- सुराष्ट्र देश में एक गिरिनगर नामका पुर है। उसमें राजा श्रीवा राज्य करता है। रानीका नाम श्रीमती है । इन दोनोंके एक हरिवर्मा नामका पुत्र और पृथ्वी नामकी पुत्री है। यह उसी पुत्रीका चित्र है। यह कन्या आपको प्रिय है अथवा नहीं, इस प्रकार आपके अन्तःकरणकी परीक्षा करनेके लिए मैं इस चित्रको आपके पास लाया हूँ। यह सुनकर राजाने उक्त कन्याके साथ विवाह करनेके लिए उसी व्यापारीको उत्तम भेंटके साथ वहाँ भेज दिया। उसने वहाँ जाकर श्रीवा राजाको भेट देते हुए उससे यह निवेदन किया कि मेरा स्वामी मगध देशका राजा तरुण, अतिशय सुन्दर, प्रतापी, जिनेन्द्र देवका उपासक, समस्त कलाओंमें कुशल, दानी, भोगी और महामण्डलेश्वर है । उसने आपकी पुत्रीकी याचना करनेके लिये मुझे यहाँ भेजा है । यह सुनकर राजा श्रीवर्माको बहुत आनन्द हुआ। तब उसने अपने मन्त्रियों और उस वासव व्यापारीके साथ अपनी पुत्रीको जयंधर राजाके साथ विवाह करा देनेके लिये कनकपुर भेज दिया । उसके
१. श कनकापुरे । २. ब तत्सखिना । ३. फ रत्नोपयनस्योपरि ब रत्नोपायतस्योपरि । Jain Education International
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