Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
१८२ पुण्यानवकथाकोशम्
[५-१, ३४ न्यक्षिपत् । अस्मत्परिणयनकामोऽस्माभिर्भणितो यस्त्वां हनिष्यति सोऽस्माकं पतिरिति । स षण्मासाभ्यन्तरे मम प्रतिमल्लमानयतेति भणित्वा बन्दिगृहे निक्षिप्तवान् । अत्र देवाः खेचराश्च जिनवन्दनायागच्छन्तीत्यत्राकोशाम इति । श्रुत्वा तद्रक्षकान् निर्धाटयात्मरक्षकान् ददौ युद्धाय नभसि तस्थौ च । वायुवेगोऽपि महायुद्धं चक्रे । बृहद्धेलायां कुमारश्चन्द्रहासेन तं हतवान् । रक्ष-महारक्षयो राज्यं दत्त्वा ताः परिणीतवान् । ततः पञ्चशतसहस्रभटाः तं प्रणम्य सेवका बभूवुः। किं कारणं मम सेवका जाता इत्युक्ते तैरुच्यतेऽस्माभिरेकदावधिज्ञानी पृष्टोऽस्माक कः स्वामीति । तेनोक्तं वायुवेगं यो हनिष्यति स युष्माकं पतिरिति वयमत्र स्थिताः। त्वया हत इति त्वभृत्या जाता इति ।
ततः काञ्चीपुरमियाय । तत्पतिवल्लभनरेन्द्रेण कन्यादानादिना सन्मानितः । ततः कलिङ्गस्थं दन्तपुरमितस्तत्र राजा चन्द्रगुप्तो भार्या चन्द्रमती तनुजा मदनमञ्जूषा । चन्द्र गुप्तो विभूत्या कृत्वा पुरं प्रवेश्य तां दत्तवान् । तत उष्ट्रदेशस्थत्रिभुवनतिलकपुरमाट । तत्पतिविजयंधरो रामा विजयावती दुहिता लक्ष्मीमती। तेन विभूत्या पुरं प्रवेश्य सुता दत्ता । सा कुमारस्यातिवल्लभा जाता । तत्र तया सुखेनातिष्ठत् । साथ विवाह करना चाहता है। परन्तु हम लोगोंने कह दिया है कि जो तुझे मार डालेगा वह हमारा पति होगा। इसपर उसने 'उस मेरे प्रतिशत्रुको तुम छह मासके भीतर ले आओ' यह कहकर हमें बन्दीगृहमें रख दिया है। यहाँ चूंकि देव और विद्याधर जिनवन्दनाके लिए आया करते हैं, इसीलिए हम लोग यहाँ आक्रन्दन करती हैं । इस घटनाको सुनकर नागकुमारने वायुवेगके रक्षकोंको हटाकर अपने रक्षकोंको वहाँ नियुक्त कर दिया और स्वयं युद्धके लिए आकाशमें स्थित हो गया । तब वायुवेगने भी आकाशमें स्थित होकर नागकुमारके साथ भयानक युद्ध किया। इस प्रकार बहुत समयके बीतनेपर नागकुमारने उसे चन्द्रहास खड्गसे मार डाला । फिर उसने रक्ष और महारक्षको राज्य देकर उन पाँचसौ कन्याओं के साथ विवाह कर लिया। तत्पश्चात् पाँचसौ सहस्रभट नागकुमारको प्रणाम करके उसके सेवक हो गये। जब नागकुमारने उनसे इस प्रकार सेवक हो जानेका कारण पूछा तो उनने बतलाया कि एक समय हमने अवधिज्ञानी मुनिसे पूछा था कि हमारा स्वामी कौन होगा। उसके उत्तरमें मुनिने कहा था जो वायुवेगको मार डालेगा वह तुम सबका स्वामी होगा। तबसे हम लोग यहाँपर स्थित हैं। आपने चूँकि उस वायुवेगको मार डाला है अतएव हम सब आपके सेवक हो गये हैं।
तत्पश्चात् नागकुमार काँचीपुरको गया । उस पुरके राजा वल्लभ नरेन्द्रने उसका पुत्री आदिको देकर सन्मान किया। तत्पश्चात् वह कलिंग देशमें स्थित दन्तपुरको गया । वहाँके राजाका नाम चन्द्रगुप्त और उसकी पत्नीका नाम चन्द्रमती था। इनके मदनमंजूषा नामकी एक पुत्री थी। चन्द्रगुप्तने नागकुमारको विभूतिके साथ नगरमें ले जाकर उसके लिए वह पुत्री दे दी। इसके पश्चात् वह उष्ट्र देशके भीतर स्थित त्रिभुवन तिलक नामक नगरको गया। वहाँपर विजयंधर नामका राजा राज्य करता था । रानीका नाम विजयावती था । इनके लक्ष्मीमती नामकी एक पुत्री थी। राजाने नागकुमारको विभूतिके साथ नगरमें लेजाकर उसके लिए उस पुत्रीको दे दिया । वह नागकुमारके लिए अतिशय प्रीतिका कारण हुई। वह वहाँ उसके साथ कुछ समय तक सुखपूर्वक स्थित रहा।
१. श ततः । २. ब 'कृत्वा' नास्ति । ३. प श उड्देश फ उडुदेश। ४. ब पुरसमावट ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org