Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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२१.
पुण्यानवकथाकोशम् संशया वृद्धि जगाम । एकदा तत्पुरसमीपे विमलवाहन केवली तस्थौ। तद्वन्दनार्थ राजादयोऽपि निर्ययुः । तत्रासुरकुमारान् विलोक्य पूतिगन्धो मूर्च्छितोऽभूत् । राज्ञा हेतौ पृष्टे केवली प्राक्तनी कथां हस्त्यादिभवादिकां कथयति स्म । असुरैरनेकधा नरके योधित इति तद्दर्शनेन मूच्छित इति । पूतिगन्धो दुःखापहारोपायं पप्रच्छ । केवली रोहिणीविधानमचीकथत्। स तं सप्त वर्षाणि कृत्वा व्रतमाहात्म्येन सुगन्धदेहोऽभूदिति सुगन्धकुमाराभिधोऽभूत् । सिंहसेनस्तस्मै राज्यं दत्त्वा विमलवाहनान्तिके दीक्षितः मुक्तिं जगाम । सुगन्धकुमारो बहुकालं राज्यं विधाय विनयाख्यतनयाय राज्यमदत्त, समयगुप्ताचार्यान्ते तपो विधायाच्युते जने।
ततोऽत्रैव द्वीपे पूर्व विदेहे पुष्कलावतीविषये पुण्डरीकिणीशविमलकीर्ति-पदमश्रियोनन्दनोऽर्ककीर्तिरजनि, मेघसेनमित्रेण वृद्धिं ययौ, सर्वकलाकुशलोऽभूत् । एकदा तत्पुरमुत्तरमथुरायाः सकाशाद्वसुदत्तलक्ष्मीमत्यौ स्वपुत्रमुदितनागते । दक्षिणमथुराया धनमित्र-सुभद्रे स्वपुत्रीगुणवत्या सहागते । तत्र मुदितगुणवत्योविवाहोऽभूत् । वेदिकायां गुणवतीमभीक्ष्य अतिशय दुर्गन्ध निकलनेके कारण उसका नाम अतिदुर्गन्धकुमार प्रसिद्ध हुआ। समयानुसार वह वृद्धिको प्राप्त हुआ।
एक समय उस नगरके समीपमें विमलवाहन नामके केवली आकर विराजमान हुए। तब राजा आदि भी उनकी वन्दनाके लिए निकले। वहाँ असुरकुमारोंको देखकर वह पूतिगन्धकुमार मूर्छित हो गया। यह देखकर राजाने केवलीसे उसके मूर्छित हो जानेका कारण पूछा । तदनुसार केवलीने उपर्युक्त हाथी आदिके भवोंसे सम्बन्ध रखनेवाली पूर्वोक्त कथाको कहकर यह बतलाया कि पूतिगन्धकुमार चूँकि चिरकाल तक नरकोंमें रहकर असुरकुमारोंके द्वारा अनेक बार लड़ाया गया था, अतएव उनको देखकर यह मूर्छित हो गया है। तत्पश्चात् पूतिगन्धने केवलीसे अपने दुःखके नष्ट होने का उपाय पूछा । उसका उपाय केवलीने रोहिणीव्रतका अनुष्ठान बतलाया । तब पूतिगन्धकुमारने उक्त व्रतका सात वर्ष तक पालन किया। इसके प्रभावसे उसका दुर्गन्धमय शरीर सुगन्ध स्वरूपसे परिणत हो गया। इससे अब उसका नाम सुगन्धकुमार प्रसिद्ध हो गया। उधर सिंहसेन राजाने उसके लिए राज्य देकर विमलवाहन केवलीके समीपमें दीक्षा ग्रहण कर ली। वह तपश्चरण करके मुक्तिको प्राप्त हुआ। सुगन्धकुमारने बहुत समय तक राज्य किया। तत्पश्चात् उसने विनय नामक पुत्रके लिए राज्य देकर समयगुप्ताचार्यके समीपमें दीक्षा ले ली। फिर वह तरश्चरण करके अच्युत स्वर्गमें देव उत्पन्न हुआ।
इसी जम्बूद्वीपके अन्तर्गत पूर्व विदेहमें एक पुष्कलावती नामका देश है। उसके अन्तर्गत पुण्डरीकिणी पुरीमें विमलकीर्ति नामक राजा राज्य करता था । रानीका नाम पद्मश्री था । उपयुक्त अच्युत स्वर्गका वह देव वहाँ से च्युत होकर इन दोनों के अकीति नामका पुत्र हुआ। वह अपने मेघसेन मित्रके साथ क्रमशः वृद्धिको प्राप्त होकर समस्त कलाओं में पारंगत हो गया। एक समय उस पुर ( पुण्डरीकिणी ) में उत्तर मथुरासे वसुदत्त और लक्ष्मीमती अपने पुत्र मुदितके साथ आये तथा दक्षिण मथुरासे धनमित्र और सुभद्रा अपनी पुत्री गुणवतीके साथ आये। वहाँपर मुदित और गुणवतीका परस्पर विवाह सम्पन्न हुआ। उस समय
१. ज प श सोतिदुर्गन्धकुमारसंज्ञया फ सोऽतिदुर्गन्ध देहेतिदुर्गन्धकुमारसंज्ञया । २. प प पृष्ट ब श इष्टः। ३.फश लक्ष्मीमत्योः । ४. फ शगतेन दक्षिण । ५. जप शमभीष्य ब मवीक्ष्य ।।
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