Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 252
________________ ५-७, ४०] ५. उपवासफलम् ७ २३१ पुरेशान्तरस्य भार्या मेरुनन्दना बभूव पुत्राणामशीति लेभे। चतुःसहस्रवर्षाणि भोगाननुभूयार्तेन मृत्वा चिरं भ्रमित्वा जम्बूद्वीपैरावतविजयपुरेशबन्धुषेणबन्धुमत्योर्दुहिता बन्धुयशा जाता । श्रीमत्यार्जिकया प्रोषधं ग्राहिता, कन्यैव मृता धनदत्तस्य वल्लभा स्वयंप्रभा बभूव । ततो जम्बूद्वीपपूर्वविदेहे पुष्कलावतीविषये पुण्डरीकिणीशवज्रमुष्टिसुप्रभयोः सुमति र्जाता। सुदर्शनार्जिकान्ते दीक्षिता। अनन्तरं ब्रह्मेन्द्रस्य देवी भूत्वागत्या विजयार्धदक्षिणश्रेणौ जम्बूपुरेशजम्बवसिंहचन्द्रयोः त्वं जातासि । अत्र तपसा देवो भूत्वा आगत्य मण्डलेश्वरो भविष्यसि, तपसा मुक्तश्च । इति बाला विवेकहीनापि प्रोषधेनैवंविधा जाता, विवेकी किं न स्यादिति ॥६॥ [४०] इह ललितघटाख्या मांससेवादियुक्ता मृतिसमयगृहीताच्चोपवासाद्विशुद्धात् । अगमदमलसौख्यां चारुसर्वार्थसिद्धिम् उपवसनमतोऽहं तत्करोमि त्रिशुद्धया ॥७॥ अस्य कथा- अत्रैव वत्सदेशे कौशाम्ब्यां राजा हरिध्वजो देवी वारुणो पुत्राः परन्तु उसने उसे छोड़ दिया। अन्तमें वह मरकर आनन्दपुरके राजा अन्तरकी मेरुनन्दना नामकी स्त्री हुई। उसने अस्सी पुत्रोंको प्राप्त किया। वह चार हजार वर्ष तक भोगोंको भोगकर आर्तध्यानके साथ मृत्युको प्राप्त हुई । इसलिए वह अनेक योनियोंमें चिर काल तक परिभ्रममण करती हुई इसी जम्बूद्वीप सम्बन्धी ऐरावत क्षेत्रके भीतर विजयपुरके स्वामी बन्धुषेण और बन्धुमतीके बन्धुयशा नामकी पुत्री हुई। उसे श्रीमती आर्यिकाने प्रोषध ग्रहण कराया। वह कुमारी अवस्थामें ही मरणको प्राप्त होकर धनदत्तकी स्वयंप्रभा नामकी प्रिय पत्नी हुई। तत्पश्चात् वह जम्बूद्वीपके पूर्व विदेह सम्बन्धी पुष्कलावती देशके भीतर जो पुण्डरीकिणी नगरी अवस्थित है उसके स्वामी वज्रमुष्टि और सुप्रभाकी सुमति नामकी पुत्री हुई। उसने सुदर्शना आर्यिकाके समीपमें दीक्षा ग्रहण कर ली। फिर वह समयानुसार मृत्युको प्राप्त होकर ब्रह्मेन्द्रकी देवी हुई। वहाँसे च्युत होकर विजयार्ध पर्वतकी दक्षिणश्रेणीके अन्तर्गत जम्बूपुरके स्वामी जम्बव और सिंहचन्द्राकी पुत्री तू हुई है । अब तू यहाँ तप करके देव और फिर वहाँसे च्युत होकर मण्डलेश्वर होगी। अन्तमें उसी पर्यायमें तपश्चरण करके मुक्ति को भी प्राप्त करेगी। इस प्रकार विवेकसे रहित वह कन्या भी जब प्रोषधके प्रभावसे इस प्रकार वैभवको प्राप्त हुई है तब भला जो भव्य विवेकपूर्वक उस प्रोषधका पालन करेंगे वे क्या वैसे वैभवको नहीं प्राप्त होंगे ? अवश्य होंगे ॥ ६ ॥ ललितघट इस नामसे प्रसिद्ध जो श्रीवर्धन आदि कुमार यहाँ मांस भक्षण आदि व्यसनोंमें आसक्त थे वे सब मरणके समयमें ग्रहण किये गये निर्मल उपवासके प्रभावसे उत्तम सुखके स्थानभूत सुन्दर सर्वार्थसिद्धि विमानको प्राप्त हुए हैं। इसलिए मैं मन, वचन व कायकी शुद्धिपूर्वक उस उपवासको करता हूँ ॥ ७ ॥ इसकी कथा इस प्रकार है- इसी वत्स देशके भीतर कौशाम्बी पुरीमें हरिध्वज नामका राजा १. ब भार्या नंदना। २. फ शजिकया पाश्र्वे प्रोषधं ब श्रीमत्यायिकाया प्रौषधं । ३. फ सुमती जाता। ४. ब गत्वात्र । ५. ज प जम्बु । ६. ब विवेकहीणा प्रो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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