Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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: ५-८, ४१] ५. उपवासफलम् ८
२३३ भवन्तो राक्षसेन गिलिता इति स्वप्नं विलोकिष्यन्ते । एतदर्शनेन मद्वचः सत्यं जानीथेति मुनिप्रतिपादितं निशम्य सकौतुकहृदयाः पुरं चलिताः, तथैव सर्वे विलुलोकिरे, स्व-स्वपितरावभ्युपगमय्य तन्मुनिनिकटे दिदीक्षिरे, संन्यासे गृहीत्वा यमुनातीरे प्रायोपगमनेन तस्थुः, मासावसाने अकालवृष्टी सत्यां तन्नदीपूरेण गताः, समाधिना सर्वार्थसिद्धि ययुरिति । ते तथाविधा अप्यवसानेऽनशनेन तथाविधा जाताः, अन्यो यो जिनभक्तः शक्त्या विशुद्ध्या च करोत्यनशनं स किं न स्यादिति ॥७॥
[४१] श्वपचकुलभवो ना भूरिदुःखी च कुष्ठी व्यभवदमरदेही दिव्यकान्तामनोजः । अनशनसुविधायी स्वस्य देहावसाने
उपवसनमतोऽहं तत्करोमि त्रिशुद्धया ॥८॥ अस्य कथा- जम्बूद्वीपपूर्वविदेहे पुष्कलावतीविषये पुण्डरीकिण्यां राजानौ वसुपालश्रीपाली। तत्पुरबहिः शिवंकरोद्याने भीमकेवलिनः समवशरणमस्थात् । तत्र खचरवती. सुभगा-रतिसेना-सुसीमाश्चेति चतस्रो व्यन्तरकान्ता आजग्मुः । केवलिनं पप्रच्छुरस्माकं इन सब घटनाओंको देखकर मेरे वचनको तुम सत्य समझ लेना। इस प्रकार मुनिके कथनको सुनकर वे आश्चर्यान्वित होते हुए नगरकी ओर गये। मार्गमें जाते हुए उन सबने जैसा कि मुनिने कहा था उन सभी घटनाओंको देख लिया। इससे विरक्त होकर उन सबने अपने-अपने माता-पिताकी स्वीकृति लेकर उन मुनिके निकटमें दीक्षा धारण कर ली । तत्पश्चात् वे संन्यासको ग्रहण करके प्रायोपगमन (स्व-परवैयावृत्तिका त्याग) के साथ यमुना नदीके तटपर स्थित हुए। ठीक एक मासके अन्तमें वे असमयमें हुई वर्षा के कारण वृद्धिको प्राप्त हुए यमुनाके प्रवाहमें बह गये । इस प्रकार समाधिके साथ मरणको प्राप्त होकर वे सब सर्वार्थसिद्धि विमानमें देव हुए । इस प्रकार वे मांस भक्षणादिमें आसक्त होकर भी अन्तमें ग्रहण किये उपवासके प्रभावसे जब वैसी समृद्धिको प्राप्त हुए हैं तब दूसरा जो जिनभक्त जीव अपनी शक्तिके अनुसार विशुद्धिपूर्वक उपवासको करता है वह क्या वैसी समृद्धिको नहीं प्राप्त होगा ? अवश्य होगा ॥ ७ ॥ ___ जो मनुष्य चाण्डालके कुलमें उत्पन्न होकर अतिशय दुःखी और कोढ़ी था वह उपवासको करके उसके प्रभावसे अपने शरीरको छोड़ता हुआ देव पर्यायको प्राप्त हुआ। तब वह देवांगनाओंके लिए कामदेवके समान सुन्दर प्रतीत होता था। इसीलिए मैं मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक उस उपवासको करता हूँ ॥ ८ ॥
इसकी कथा इस प्रकार है- जम्बूद्वीपके भीतर पूर्व विदेहमें एक पुष्कलवती नामका देश व उसमें पुण्डरीकिणी नगरी है । वहाँ राजा श्रीपाल और वसु पाल राज्य करते थे। एक समय उस नगरके बाहर शिवंकर उद्यानमें भीम नामक केवलीका समवसरण स्थित हुआ। वहाँ खचरवती (सुखावती), सुभगा, रतिसेना और सुसीमा नामकी चार व्यन्तर देवियाँ आई। उन्होंने केवलीसे पूछा कि
१. ब विलोकयिष्यन्ते । २. श गमने । ३. ज़ प ब अप्यवसनेन फ अप्यवसानेन । ४. फ दिव्यकान्तो मनोज्ञः, श दिव्यंकान्तो मनोजः ।
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