Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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:६-२, ४३ ]
६. दानफलम् २
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सम्यक्त्वं ग्राहयितुमागतो। तदनु तान् षडपि सम्यक्त्वं ग्राहयित्वा गतौ यती। त्रिपल्यावसाने पडपि शरीरत्यागं कृत्वा ईशाने श्रीप्रभविमाने वजूजङ्घार्यः श्रीधरो देवो जातः, श्रीमत्यार्या स्वयंप्रभविमाने स्वयंप्रभदेवः, व्याघ्रायश्चित्राङ्गदविमाने चित्राङ्गदेवः, वराहार्यो नन्दविमाने मणिकुण्डलदेवः, वानरार्यो नन्द्यावर्तविमाने मनोहरदेवः, नकुलार्यः प्रभाकरविमाने मनोरथदेवो जात इति संबन्धः।
एकदा श्रीप्रभाचले प्रीतिकरमुनेः कैवल्योत्पत्तौ श्रीधरदेवादयस्तं वन्दितुमाजग्मुः । वन्दित्वा श्रीधरोऽपृच्छत् महामत्यादयः क्वोत्पन्ना इति । केवली बभाण-द्वौ निगोदं प्रविष्टी, शतमतिः शर्करायामजनि । ततः श्रीधरस्तं तत्र गत्वा संबोधितवान् । स नारकस्तस्मानि:सृत्य पुष्करार्धपूर्वविदेहे मङ्गलावतीविषये रत्नसंचयपुरेशमहोधरसुन्दर्योः सूनुर्जयसेनोऽ. भूत् । स च विवाहे तिष्ठन् तेनैव श्रीधरदेवेन संबोध्य प्रवाजितः समाधिना ब्रह्मेन्द्रो जातः । श्रीधरदेव आगत्यात्रैव पूर्वविदेहे वत्सकावतीविषये सुसीमानगरेशसुदृष्टिसुन्दर्योः पुत्रः सुविधिर्जातः । तदा तत्र सकलचक्री अभयघोषस्तत्सुतां मनोरमां परिणीतवान् । स स्वयंप्रभदेव आगत्य तस्य नन्दनः केशवो बभूव । तद्विषय एव मण्डलिकविभीषणप्रियदत्तयोः स ज्ञान प्राप्त हुआ है । हम तुम्हें सम्यग्दर्शन ग्रहण करानेके लिये यहाँपर आये हैं। तत्पश्चात् वे दोनों मुनिराज उन छहोंको सम्यग्दर्शन ग्रहण कराकर वापिस चले गये। तीन पल्य-प्रमाण आयुके अन्तमें मरणको प्राप्त होकर उन छहोंमें वज्रजंघ आर्यका जीव ईशान स्वर्गके भीतर श्रीप्रभ विमानमें श्रीधर देव, श्रीमती आर्याका जीव स्वयंप्रभ विमानमें स्वयंप्रभ देव, व्याघ्र आर्यका जीव चित्राङ्गगद विमानमें चित्राङ्ग देव, शूकर आर्यका जीव नन्द विमानमें मणिकुण्डल देव, बानर आर्यका जीव नन्द्यावर्त विमानमें मनोहर देव और नेवला आर्यका जीव प्रभाकर विमानमें मनोरथ देव हुआ। इस प्रकार इन सबका परस्पर सम्बन्ध जानना चाहिये ।
एक समय श्रीप्रभ पर्वतके ऊपर प्रीतिकर मुनिके लिए केवलज्ञानके प्राप्त होनेपर वे श्रीधर आदि देव उनकी वन्दनाके लिये आये। वन्दना करनेके पश्चात् श्रीधर देवने केवलीसे पूछा कि महाबलके मंत्री महामति आदि कहाँपर उत्पन्न हुए हैं ? इसपर केवलीने कहा कि उनमें से दो ( महामति और संभिन्नमति ) तो निगोद अवस्थाको प्राप्त हुए हैं और एक शतमति शर्कराप्रभा पृथिवी (दूसरा नरक)में नारकी हुआ है । तब श्रीधरदेवने वहाँ जाकर उसको सम्बोधित किया। वह नारकी उक्त पृथिवीसे निकल कर पुष्करार्ध द्वीपके पूर्व विदेहमें जो मंगलावती देश है उसके अन्तर्गत रत्नसंचयपुरके राजा महीधर और रानी सुन्दरीके जयसेन नामका पुत्र हुआ है। वह अपने विवाहके लिए उद्यत ही हुआ था कि इतनेमें उसी श्रीधर देवने आकर उसको फिरसे सम्बोधित किया। इससे प्रबुद्ध होकर उसने दीक्षा ले ली। पश्चात् वह समाधिपूर्वक शरीरको छोड़कर ब्रह्मेन्द्र हुआ। वह श्रीधरदेव स्वर्गसे च्युत होकर पूर्व विदेह के भीतर वत्सकावती देशमें स्थित सुसीमा नगरीके राजा सुदृष्टि और रानी सुन्दरीके सुविधि नामका पुत्र हुआ। उस समय वहाँ अभयघोष नामका सकल चक्रवर्ती था । सुविधिने उक्त चक्रवर्तीको पुत्री मनोरमाके साथ विवाह कर लिया। वह स्वयंप्रभदेव (श्रीमतीका जीव ) स्वर्गसे आकर उस सुविधिके केशव नामका
१. ब 'श्रीप्रभविमाने' नास्ति । २. ज प ब श विदेह । ३. ज प बश विषय । ४. जप बश विदेह । ५. ज पब श विषय । ६. ब अभयघोषसुतां । ७. ब आगत्य वरदत्ततस्यां नंदनः ।
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