Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यात्रवकथाकोशम्
[ ५-४, ३७:
मार्जारौ बभूवतुः । तत्र मार्जारेणाखुर्हतः सन् नकुलेऽभून्मार्जारोऽहिनकुलेन हतोऽपि अहिः कुर्कुटो ऽजनि नकुलो मत्स्यः । तदनु पारापतौ बभूवतुः, विद्युता मम्रतुरत्रैव हस्तिनापुरे राजा सोमप्रभो रामा कनकप्रभा पुरोहितो रविस्वामी रमणो सोमश्रोस्तस्याः सोमशर्मसोमदत्ती यमलकोवजनिशम् । तयोः क्रमेण वनिते सुकान्तालक्ष्मीमत्यौ । मृते तत्पितरि राज्ञा कनिष्ठः पुरोहितो विहितः । स राजमान्यो भूत्वा तस्थौ । सोमशर्मा मद्रनितया यातीति विबुध्य सोमदत्तो दिगम्बरोऽजनि सकलागमधरो भूत्वा एकविहारी जातो विहरन्नेकदा हस्तिनापुर वहिः प्रदेशमागतः । तदा सोमप्रभो नृपो मगधेशनिकटे मदनावलीनाम्नीं तत्कन्यां व्यालसुन्दरं च हस्तिनं याचितुं स्वविशिष्ट॑मयापयद्दास्यति नो वेति स्वयमपि प्रस्थानमकार्षीत् । तदा स तं मुनिमद्राक्षीत् । तत्तपोग्रहणं विज्ञाय तत्पदं सोमशर्मणे दत्तम् तं पृष्टवान् नृपः प्रस्थाने क्रियमाणे श्रमणो दृष्टः, किं क्रियते इति । सोमशर्मा भ्रातरं विज्ञाय जन्मान्तरवैरभावेनावदत् इममपशकुनकारकं दिशाबलिं कृत्वा गन्तव्यम् । एतत् श्रुत्वा नृपो पापमिति भणित्वा श्रोत्ररन्ध्रे करयुगेन पिधाय तस्थौ । तदा विश्वदेवः शाकुनिको वृते हे पुरोहित,
लड़े और मरकर चूहा एवं बिलाव हुए, इनमें चूहेको बिलावने मार डाला । वह मरकर नेवला हुआ । उधर वह चिलाव मरकर सर्प हुआ । इस सर्पको उस नेवलेने मार डाला । वह मरकर कुक्कुट (मुर्गा ) हुआ और वह नेवला समयानुसार मरणको प्राप्त होकर मत्स्य हुआ । तत्पश्चात् वे दोनों मरकर कबूतर हुए । यहीं हस्तिनापुर में किसी समय सोमप्रभ राजा राज्य करता था । रानीका नाम कनकप्रभा था । इस राजाके यहाँ रविस्वामी नामका पुरोहित था । इसकी पत्नीका नाम सोमश्री था । वे दोनों कबूतर बिजली के निमित्तसे मरकर इस सोमश्री के सोमशर्मा और सोमदत्त नामके दो युगल पुत्र हुए थे । इन दोनोंकी स्त्रियोंका नाम क्रमशः सुकान्ता और लक्ष्मीमती था । जब इनका पिता मरा तब राजाने छोटे पुत्र ( सोमदत्त ) को पुरोहित बनाया । तब वह राजमान्य होकर स्थित हुआ । पश्चात् सोमशर्मा मेरी पत्नी के साथ संभोग करता है, यह जानकर उस सोमदत्तने जिनदीक्षा ले ली । वह समस्त आगमका ज्ञाता होकर एक-विहारी हो गया । इस प्रकार से विहार करता हुआ वह एक समय हस्तिनापुरके बाह्य प्रदेश में आया । इसी समय सोमप्रभ राजाने मगध देशके राजाके पास उसकी कन्या मदनावली और व्याल सुन्दर हाथीको माँगने के लिए अपने विशिष्ट (दूत) को भेजा । साथमें 'वह देगा कि नहीं' इस सन्देह के वश होकर राजाने स्वयं भी प्रस्थान किया । उस समय राजाने जाते हुए मार्गमें उन सोमप्रभ मुनिको देखा । उधर सोमप्रभ राजाने सोमदत्तको दीक्षित हो गया जानकर पुरोहितका पद सोमशर्मा के लिए दे दिया था । उस समय प्रस्थान करते हुए राजाने जब सोमदत्त मुनिको देखा तब उसने सोमशर्मा पुरोहितसे पूछा कि प्रस्थानके समयमें यदि दिगम्बर मुनि दिखें तो क्या करना चाहिये ? यह सुनकर सोमशर्माने सोमदत्त मुनिको अपना भाई जानकर जन्मान्तरके द्वेषवश राजा से कहा कि इसे अपशकुन कारक समझकर दिशाओंके लिये बलि दे देना चाहिये और तत्पश्चात् आगे गमन करना चाहिये । इस बात को सुनकर राजाने 'यह पाप है' कहते हुए अपने कानोंके छेदों को दोनों हाथों से आच्छादित कर लिया। उस समय विश्वदेव नामक शकुन शास्त्र के जानकारने उससे
१. व कुक्कुटोश कुर्कटो । २. ज फस जमलका । ३. व मदनवाली नामां । ४. ज प श स्ववशिष्ट । ५ ज मह्यापयद्वास्यति । ६. फ स्वयमेवापि । ७. ज प व श्रवणो । श्रवण दृष्टः किं क्रियते । ८. प गत्वा । ९. ब- प्रतिपाठोऽयम् । श विश्वदेवशकुनिको व्रत |
८. व दृष्टः किं क्रियमाणो
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