Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यात्रकथाकोशम्
[ ५-५, ३८:
। संप्रति चन्द्रगुप्तस्तदागमनं विज्ञाय सपरिजनो वन्दितुं ययौ । वन्दित्वा स्वप्नफलमप्राक्षीत् । मुनिरब्रवीत् मुनिरब्रवीत् अग्रेदुःख त्वया स्वप्ने दृष्टम् । तथाहि दिनपत्यस्तमनं वस्तुप्रकाशक परमागम स्वस्तिमनं सूचयति १ । सुरद्रुमशाखाभङ्गोऽद्यास्तमन (?) प्रभृति - क्षत्रियाणां राज्यं विहाय तपोऽभावं बोधयति २ । आगच्छतो विमानस्य व्याघुटनम् अद्यप्रभृत्यत्र सुरचारणादीनाम् आगमनाभावं ब्रूते ३ । द्वादशशीर्षः सर्पो द्वादशवर्षाणि दुर्भिक्षं वदति ४ । चन्द्रमण्डलभेदो जैनदर्शने संघादिभेदं निरूपयति ५ । कृष्णगजयुद्धमितोऽत्राभिलषितवृष्टेरभावं गमयति ६ । खद्योतः परमागमस्योपदेशमात्रावस्थानं निगदति ७ । मध्यमप्रदेशशुष्कतडागमार्थखण्डमध्यदेशे धर्मविनाशमाचष्टे । धूमो दुर्जनादीनामाधिक्यं भणति
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सिंहासनस्थो मर्कटोऽकुलीनस्य राज्यं प्रकाशयति १० । सुवर्णभाजने पायसं भुञ्जानः श्वा राजसभायां कुलिङ्गपूज्यतां द्योतयति ११ । गजस्योपरि स्थितो मर्कटो राजपुत्राणामकुलीन सेवां बोधयति १२ । कचारस्थं कमलं रागादियुक्ते तपोविधानं मनयति १३ । मर्यादाच्युतउदधिः षष्ठांशातिक्रमेण राज्ञां सिद्धादायग्रहणमाविर्भावयति १४ । तरुणवृषभयुक्तो
इसे अन्तराय मानकर आचार्य भद्रबाहु आहार ग्रहण न करके उद्यानमें वापिस चले गये । उधर संप्रति चन्द्रगुप्त भद्रबाहु के आगमनको जानकर परिवार के साथ उनकी वंदना के लिए गया । वंदना करनेके पश्चात् उनसे पूर्वोक्त स्वप्नों के फलको पूछा । मुनि बोले- भविष्य में इस दुःषमा कालकी जैसी कुछ प्रवृत्ति होनेवाली है उस सबको तुमने इन स्वप्नोंमें देख लिया है । यथा- (१) तुमने जो अस्त होते हुए सूर्य को देखा है वह यह सूचना करता है कि अब समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करनेवाला परमागम (द्वादशांग श्रुत) नष्ट होनेवाला है । (२) कल्पवृक्षकी शाखा टूटने से यह ज्ञात होता है कि अब क्षत्रिय जन राज्यको छोड़कर तपको ग्रहण नहीं करेंगे । ( ३ ) आते
विमानका लौटना यह बतलाता है कि आजसे यहाँ देवों एवं चारण ऋषियों का आगमन नहीं होगा । (४) बारह सिरोंसे संयुक्त सर्पसे यह विदित होता है कि यहाँ बारह वर्ष तक दुर्भिक्ष रहेगा । (५) चन्द्रका भेद यह प्रगट करता है कि अब जैन दर्शन में संघ, गण एवं गच्छ आदिका भेद प्रवृत्त होगा । (६) काले हाथियों का युद्ध यह सूचित करता है कि अबसे यहाँ अभीष्ट वर्षाका अभाव रहेगा। (७) जुगुनूके देखने से यह प्रकट होता है कि सकल श्रुतका अभाव हो जानेपर अब यहाँ उसका कुछ थोड़ा-सा उपदेश मात्र अवस्थित रहेगा । (८) मध्य भागमें सूखा हुआ तालाब कहता है कि अब आर्यखण्डके मध्य भागमें धर्मका नाश होगा । ( ९ ) धूमका दर्शन दुर्जन आदिकों की अधिकताको सूचित करता है । (१०) सिंहासन के ऊपर स्थित बन्दरके देखनेसे सूचित होता है कि अब कुलहीन राजाका राज्य प्रवृत्त होगा । ( ११ ) सुवर्णकी थाली में खीरको खानेवाला कुत्ता यह बतलाता है कि अब राजसभा में कुलिंगियोंकी पूजा हुआ करेगी । (१२) हाथी के ऊपर स्थित बन्दरके देखने से सूचित होता है कि अब राजपुत्र कुलहीन मनुष्यों की सेवा किया करेंगे । (१३) कचरामें स्थित कमल यह बतलाता है कि अब तपका अनुष्ठान राग-द्वेषसे कलुषित मनुष्य किया करेंगे | (१४) मर्यादाको लाँघनेवाले समुद्रके देखनेसे प्रगट होता है कि राजा लोग जो अब तक
१. ब त्यस्तमनं त्वया स्वप्ने दृष्टं यत्तत् सकल । २. ब शीर्षसर्वो । ३. श निवदति । ४ ब दुर्जनाधिक्यं । ५. श मर्कटो राजपुत्राणामकुलीनसेवां बोधयति । ६. व कत्वारस्थं । ७ ब सिद्धादयग्रहण मावि श सिद्धादाय मावि ।
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