Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यास्रवकथाकोशम्
[५-२, ३५ : त्पन्नाः । कमलश्रीभविष्यानुरूपे शुक्रमहाशुक्रेदेवौ जातौ । तत. भागत्यात्रैव पूर्वविदेहे राजपुत्रौ भूत्वा मुक्ति ययतुः। इति परकृतोपवासानुमोदेन वैश्य एवंविधो जातो यः स्वयं त्रिशुद्धया करोति स किं न स्यादिति ॥२॥
[३६-३७ ] अपि कुथितशरीरो राजपुत्रोऽतिनिन्द्यो व्यजनि मनसिजातश्चोपवासात्तदैव । नृसुरगतिभवं शं चारु भुक्त्वा स मुक्त उपवसनमतोऽहं तत्करोमि त्रिशुद्धया ।।३।। जगति विदितकीर्ती रोहिणी दिव्यमूर्तिविगतसकलशोकाशोकभूपस्य रामा। अजनि सदुपवासाजातपुण्यस्य पाका
दुपवसनमतोऽहं तत्करोमि त्रिशुद्ध था ॥४॥ अनयोवृत्तयोः कथे रोहिणीचरित्रे यात इति कथ्यते । अत्रैवार्यखण्डे अङ्गदेशचम्पा. पुरेशमघवश्रीमत्योः पुत्राः श्रीपालगुणपालावनिपालवसुपालश्रीधरगुणधरयशोधर-रणसिंहाश्चेत्यष्टौ । तेभ्यो लघ्वी रोहिणी सातिशयरूपा नन्दीश्वराष्टम्यां कृतोपवासा जिनालये जिनासार योग्य स्थानों में उत्पन्न हुए। कमलश्री और भविप्यानुरूपा शुक्र और महाशुक्र स्वर्गमें देव हुई । वहाँसे च्युत होकर वे दोनों इसी द्वीपके पूर्व विदेहमें राजपुत्र होते हुए मुक्तिको प्राप्त हुए । इस प्रकार दूसरेके द्वारा किये गये उपवासकी अनुमोदनासे वह धनमित्र वैश्य जब इस प्रकारको विभूतिको प्राप्त हुआ है तब भला जो मन, वचन व कार्यकी शुद्धिपूर्वक उसका स्वयं आचरण करता है वह वैसा नहीं होगा क्या ? अवश्य होगा ॥ ३५ ॥
जो राजपुत्र दुर्गन्धित शरीरसे संयुक्त होता हुआ अतिशय निन्दनीय था वह उपवासके प्रभावसे उसी समय कामदेवके समान सुन्दर शरीरवाला हो गया और फिर मनुष्य एवं देवगतिके उत्तम सुखको भोगकर मुक्तिको भी प्राप्त हुआ है । इसीलिए मैं मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक उस उपवासको करता हूँ ॥३॥
पूतिगन्धा उत्तम उपवाससे उत्पन्न हुए पुण्यके फलसे अशोक राजाकी रोहिणी नामकी पत्नी हुई है। दिव्य शरीरको धारण करनेवाली उस रोनीकी कीर्ति लोकमें विदित थी तथा वह सब प्रकार के शोकसे रहित थी। इसीलिए मैं मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक उस उपवासको करता हूँ ॥४॥
इन दोनों पद्योंकी कथायें रोहिणीचरित्रमें आई हैं। तदनुसार यहाँ उनका कथन किया जाता है-इसी आर्यखण्डके भीतर अङ्गदेशमें चम्पापुर है । उसमें मघवा राजा राज्य करता था । रानीका नाम श्रीमती था। इन दोनोंके श्रीपाल, गुणपाल, अवनिपाल, वनपाल, श्रीधर, गुणधर, यशोधर और रणसिंह ये आठपुत्र थे। उनसे छोटी एक रोहिणी नामकी पुत्री श्री जो अतिशय रूपवती थी। वह अष्टाह्निक पर्वमें अष्टमीके दिन उपवासको करके जिनालयमें गई।
१. श रोहिणे चरित्रे । २. ज प फ तत् कथ्यते श तत्कथिते ।
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