Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
१८० पुण्यात्रवकथाकोशम्
[५-१, ३४: अभिचन्द्रस्य तनुजा चन्द्राभा, शुभचन्द्रस्य सप्त कुमार्यः एताः परिणीय हस्तिनागपुरे सुखेन तस्थौ।
इतो महाव्यालः पाटलीपुत्रे तिष्ठन् पाण्डुदेशे दक्षिणमथुरायां राजा मेघवाहनः, प्रिया जयलक्ष्मीः, पुत्री श्रीमती नृत्ये मां मृदङ्गवाद्येन यो रजयति स भर्तेति कृतप्रतिज्ञा। तद्धात्रिकापुत्री कामलता मारमपि नेच्छतीति श्रुतवान् । ततस्तत्र जगाम पुरं प्रविश्यापणे उपविष्टः। तदा तदीशमेघवाहनस्य भागिनेयाः कामाङ्कनामा कोटीभटः। स मामपार्वे कामलतां ययाचे । तेन दत्ता सा नेच्छति। तेन हठान्नीयमाना महाव्यालं ददर्शासक्ता बभूव । सा बभाण च मां रक्ष रक्षेति । ततो महाव्यालोऽव्रत कन्यां मुञ्च मुञ्चेति । स बभाण-त्वं मोचयिष्यसि । मोचयामीत्युक्त्वा कृपाणपाणिः संमुखं तस्थौ, कामाकोऽपि । महाकदने कामाकं जघान । तदा मेघवाहनो भीत्या संमुखमाययो। स्वभवनं प्रवेश्य कामलतामदत्त । तया समं तत्र सुखेन तस्थौ।
अथावन्तीपूज्जयिन्यां राजा जयसेनो देवी जयश्रीः। पुत्री मेनकी कमपि नेच्छतोति श्रुत्वा तत्र ययौ । सा तं विलोक्य मे भ्रातेति बभाण । ततः स संतुष्टो हस्तिनागपुरं व्यालकी पुत्री चन्द्राभा और शुभचन्द्रकी उन सात कन्याओंके साथ विवाह करके सुखपूर्वक हस्तिनागपुरमें स्थित हुआ।
___ इधर महाबल जब पाटलीपुत्रमें स्थित था तब पाण्डु देशके भीतर दक्षिण मथुरामें मेघवाहन नामका राजा राज्य कर रहा था। उसकी पत्नीका नाम जयलक्ष्मी था । इनके एक श्रीमती नामकी पुत्री थी। उसने यह प्रतिज्ञा की थी कि जो मृदंग बजाकर मुझे नृत्यमें अनुरंजित करेगा वह मेरा पति होगा। श्रीमतीकी धायके भी एक कामलता नामकी पुत्री थी। वह कामदेवके समान भी सुन्दर पुरुषको नहीं चाहती थी। यह जब महाव्यालने सुना तब वह पाटलीपुत्रसे दक्षिण मथुराको चल दिया । वहाँ नगरके भीतर पहुँचकर वह बाजारमें ठहर गया। उधर उस दक्षिण मथुराके राजा मेघवाहनके कामांक नामका एक कोटिभट भानजा था । उसने मामाके पास जाकर उससे कामलताको माँगा। तदनुसार उसने उसे दे भी दिया। परन्तु कामलताने स्वयं उसे स्वीकार नहीं किया । तब कामांक उसे बलपूर्वक ले जा रहा था। उस समय कामलता महाव्यालको देखकर उसके ऊपर आसक्त हो गई। तब उसने महाव्यालसे अपनी रक्षा करनेकी प्रार्थना की। इसपर महाव्यालने कामांकसे उस कन्याको छोड़ देनेके लिए कहा। परन्तु उसने उसे नहीं छोड़ा। वह बोला कि क्या तुम मुझसे इस कन्याको छुड़ाओगे ? इसके उत्तरमें वह 'हाँ छुड़ाऊँगा' कह कर तलवारको ग्रहण करता हुआ कामांकके सामने स्थित हो गया। उधर कामांक भी उसी प्रकारसे युद्धके लिए उद्यत हो गया। तब दोनोंमें घोर युद्ध हुआ। अन्तमें महाच्यालने कामांकको मार डाला । तब मेघवाहन भयभीत होकर महाव्यालके समक्ष आया और उसे अपने भवनके भीतर ले गया। फिर उसने उसे कामलता दे दी। इस प्रकार महाव्याल कामलताके साथ वहाँ सुखसे स्थित हुआ।
अवन्ति देशके अन्तर्गत उज्जयिनी नगरीमें जयसेन नामका राजा राज्य करता था। रानीका नाम जयश्री था। उनके एक मेनकी नामकी पुत्री थी जो किसी भी पुरुषको नहीं चाहती थी। यह सुनकर महाव्याल उज्जयिनी गया । उसे देखकर मेनकीने अपने भाईके रूपमें सम्बोधित किया। इससे सन्तुष्ट होकर महाव्याल हस्तिनापुरमें व्यालके समीप गया, वहाँ उसने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org