Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ ५-१, ३४ :
रपत्यं गुणवती | राशेमां मद्भागिनेयनागकुमाराय दास्यामीति प्रतिपन्नम् । तां सिन्धुदेशेशोऽतिप्रचण्डः स्वयं कोटिभटः तथा जयविजय सूरसेनप्रवरसेनसुमतिनामभिः कोटिभटेर्युक्तः चण्डप्रद्योतननामा याचितवान् । नागकुमाराय दन्तेति हरिवर्मणोदिते स तत्पुरं वेष्टयित्वा तिष्ठति । हरिवर्मा मन्मित्रम्, तेन लेखः प्रस्थापितः इति तस्य सहायतां कर्तुं व्रजामि । यावदह मेमि तावत्तिष्ठात्रेति । कुमार ईषद्धसित्वा सिंहरथेन सह तत्र ययौ । तदागतिं विबुध्य चण्डप्रद्योतनेन जयविजयौ रोद्धुं प्रस्थापितौ । तयोरुपरि कुमारेण पञ्चशतसहस्रभटाः कथितास्तैस्तौ बद्ध्वानीय प्रभोः समर्पित । तद्बन्धनमाकर्ण्य चुकोप चण्डप्रद्योतनो व्यूहत्रयं विधाय रणावनौ तस्थौ । कुमारोऽच्छेद्याभेद्यौ सूरसेनप्रवरसेनयोः, व्यालं सुमतेरुपरि कथयित्वा स्वयं चण्डप्रद्योतनस्याभिमुखीबभूव । महायुद्धे स्वस्य स्वस्याभिमुखीभूत्वा बद्धा नागकुमारादिभिः शत्रवः । हरिवर्मा विदितवृत्तान्तः, सोऽर्धपथमाययौ । तं चण्डप्रद्योतनादिभिः स्वं पुरं विवेशयामास । सुमुहूर्ते गुणवत्या तस्य विवाहं चकार । कुमारश्चण्डप्रद्योतनादिकान् विमुच्य परिधानं दत्त्वा निःशल्यान् कृत्वा तद्देशं प्रस्थाप्य स्वयमूर्जयन्ते नेमिजिनं वन्दितुमियाय । वन्दित्वा गिरिनगरं प्रत्यागमे विज्ञापनपत्रं दत्त्वा कश्चिद्विशप्तवान्
पुण्यावकथाकोशम्
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है । राजाने उसे अपने भानजे नागकुमारके लिए देना स्वीकार किया था । परन्तु उसकी याचना सिंधुदेशके राजा अतिशय प्रतापी चण्डप्रद्योतनने की थी । वह स्वयं तो कोटिभट है ही, साथ में उसके सहायक जय, विजय, सूरसेन, प्रवरसेन और सुमति नामके अन्य कोटिभट भी हैं । इसपर जब हरिवर्माने उससे यह कहा कि वह पुत्री नागकुमारके लिए दी जा चुकी है तब वह वहाँ जाकर हरिवर्मा नगरको घेरकर स्थित हो गया है । हरिवर्मा मेरा मित्र है, इसीलिए उसने मुझे पत्र भेजा है । अतएव मैं उसकी सहायता करनेके लिए जा रहा हूँ। जब तक मैं यहाँ वापिस नहीं आ जाता हूँ तब तक आप यहाँ ही रहें । यह सुनकर नागकुमार कुछ हँसा और सिंहरथके साथ गिरिनगर के लिए चल दिया । सिंहरथके साथ नागकुमारके आनेके समाचारको जानकर चण्डप्रद्योतनने उन्हें रोकनेके लिए जय और विजयको भेजा । उन दोनोंके ऊपर आक्रमण करने के लिए नागकुमारने पाँचसौ सहस्रभटोंको आज्ञा दी । तब वे उन दोनोंको बाँधकर ले आये और नागकुमारको समर्पित कर दिया । जय और विजयके बाँधे जानेके समाचारको जानकर चण्डप्रद्योतनको बहुत क्रोध आया । तब वह तीन व्यूहों को रचकर स्वयं भी युद्धभूमिमें स्थित हुआ । उस समय नागकुमार अच्छेद्य और अमेद्यको सूरसेन और प्रवरसेनके साथ, तथा व्यालको सुमतिके साथ युद्ध करने की आज्ञा देकर स्वयं चण्डप्रद्योतनके सामने जा डटा । इस महायुद्ध में नागकुमार आदिने अपने अपने शत्रुओं का सामना करके उन्हें बाँध लिया । जब यह सब समाचार हरिवर्माको ज्ञात हुआ तब वह नागकुमारका स्वागत करनेके लिये आधे मार्ग तक आया और उसे चण्डप्रद्योतन आदिकोंके साथ नगरके भीतर ले गया । फिर उसने उसका विवाह शुभ मुहूर्तमें गुणवती के साथ कर दिया । तत्पश्चात् नागकुमारने चण्डप्रद्योतन आदिको छोड़कर और उन्हें वस्त्रादि देकर निश्चिन्त करते हुए उनके देशको वापिस भेज दिया । वह स्वयं ऊर्जयन्त पर्वत के ऊपर नेमि जिनेन्द्रकी बन्दना करने के लिए गया । जब वह उनकी वन्दना करके गिरिनगर वापिस आ रहा था तब उसे किसीने विज्ञप्तिपत्र देकर इस प्रकार निवेदन किया
१. प्रथिता । २. फश प्रभौ । ३. ब वेशयामास ।
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