Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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:५-१, ३४] ५. उपवासफलम् १
१६५ तदनु तनुजस्यादेशे दत्ते पितुर्निकटे स उपविवेश। सर्वेऽपि वीणावाद्यकुशला उपविष्टाः। तदनु तत्कुमारीभ्यां परीक्षा दत्ता। तदा पित्रा पृष्टोऽतिकुशला केति । सोऽवोचल्लध्वी कुशला । पुनः राजापृच्छदनयोर्यमलकयोमध्ये गुरुलघुभावः कथं विज्ञातस्त्वया। सोऽकथयद्देव, यदैषा लघ्वी वीणां वादयति तदैषा ज्यायसी मुखमवलोकयति । इमा यदा वादयति तदेषाधो ऽवलोकयतीति इङ्गिताकारेण बुध्ये इति निरूपिते जनकौतुकमासीत् । ते चात्यासक्ते पितृवचनेन परिणीतवान् प्रतापंधरः सुखमार्स।
एकदास्थानस्थो भूपः केनचिद्विशप्तो देवानेकदेशान् विनाशयन्नीलगिर्यभिधो हस्ती समागत्य पुरावहिः सरसि तिष्ठतीति राजा श्रीधरं तं धर्तुमस्थापयत् । स च बलेन गत्वा तं क्षोभं निनाय, धतुमशक्तः पलाय्य पुरं प्रविष्टः। तदाकर्ण्य राजा स्वयं निर्गतः। तं निवार्य नागकुमार एकाकी गत्वा गजधरणशास्त्रोक्तक्रमेण तं दधे । तत्स्कन्धमारुह्येन्द्रलीलया पुरं विवेश। पितरं प्रति वभाण देव, हस्तिनं गृहाणेति। तेनोक्तं तवैव योग्योऽयम् , त्वमेव गृहाण । स महाप्रसाद इति भणित्वा तमादाय स्वगृहं गतः। तदनुसार राजाके आज्ञा देनेपर नागकुमार पिताके पासमें बैठ गया । अन्य जन जो वीणा बजानेमें निपुण थे वे भी सब सभामें आकर बैठ गये। इसके पश्चात् उन दोनों कुमारियोंने अपनी वीणावादनमें परीक्षा दी । तब पिताने नागकुमारसे पूछा कि इन दोनोंमें विशेष निपुण कौन है ? नागकुमारने उत्तर दिया कि छोटी पुत्री अधिक प्रवीण है। तब राजाने उससे फिर पूछा कि ये दोनों युगल स्वरूपसे साथमें उत्पन्न हुई हैं, ऐसी अवस्थामें तुमने यह कैसे ज्ञात किया कि यह बड़ी है और यह छोटी है ? इसके उत्तरमें नागकुमार बोला कि हे देव ! जब यह छोटी लड़की वीणाको बजाती है तब यह बड़ी लड़की उसके मुखको देखती है और जब यह बड़ी लड़की बीणाको बजाती है तब छोटी लड़की नीचे देखती है। इस शारीरिक चेष्टाके द्वारा उनके छोटे-बड़ेपनका ज्ञान हो जाता है । नागकुमारके इस उत्तरसे लोगोंको बहुत कौतुक हुआ। वे दोनों कन्यायें भी नागकुमारकी कुशलताको देखकर उसके ऊपर अतिशय आसक्त हुई। तब नागकुमारने पिताकी आज्ञा पाकर उनके साथ विवाह कर लिया। इस प्रकार प्रतापन्धर सुखपूर्वक रहने लगा।
एक समय राजा सभामें बैठा हुआ था । तब किसीने आकर उससे प्रार्थना की कि हे देव ! नीलगिरि नामका हाथी अनेक देशोंको उजाड़ता हुआ यहाँ आकर नगरके बाहर तालाबपर स्थित है। यह सुनकर राजाने उस हाथीको पकड़ने के लिए श्रीधरको भेजा। तदनुसार वह सेनाके साथ उक्त हाथीको वशमें करनेके लिए गया भी। परन्तु वह उसे वशमें नहीं कर सका । बल्कि इससे वह हाथी और भी क्षुब्ध हो उठा। तब श्रीधर भागकर नगरमें वापिस आ गया । यह सुनकर उक्त हाथीको वशमें करनेके लिए राजा स्वयं ही वहाँ जानेको उद्यत हुआ । तब नागकुमार पिताको रोककर स्वयं अकेला वहाँ गया। उसने शास्त्रमें निर्दिष्ट हाथी पकड़नेकी विधिसे उसे पकड़ लिया। फिर वह उसके कंधेपर चढ़कर इन्द्र जैसे ठाट-बाटसे नगरके भीतर प्रविष्ट हुआ और पितासे बोला कि हे देव ! यह है वह हाथी, इसे ग्रहण कीजिये । तब पिताने कहा कि यह तुम्हारे ही योग्य है, इसे तुम ही ले लो। इसपर नागकुमारने 'यह आपकी बड़ी कृपा है' कहकर उसे ले लिया और अपने निवास स्थानको चला गया ।
१. ब 'तदा' नास्ति । २. फ ज्ञायसी। ३. प तदैमाधो बतदाधो। ४. फ सुखमासीत् । ५. फ श तमस्थापयत् ।
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