Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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५: -१, ३४ ]
५. उपवासफलम् १ प्रतापंधरो मातरं संबोध्य प्रियाभ्यां व्यालादिभिश्च तस्मानिर्गत्य क्रमेणोत्तरमथुरामवाप । तत्पुरबाहो शिबिरं निवेश्य व्यालो नीलगिरि पानीयं पाययितुं ययौ। इतः कुमारो भद्रेभमारुह्य कतिपयकिंकरयुतो नगरं द्रष्टुं विवेश । राजमार्गेण गच्छन् देवदत्तास्यवेश्यागृहशोभां वीक्ष्य तत्र प्रविष्टः। तया स्वोचितप्रतिपत्त्या प्रवेशितः। तत्र कियत्कालं विलम्ब्य तदुचितसंमानदानेन च तां संतोष्य निर्गच्छंस्तयाभाणि'- देव, राजभवननिकटं मागाः। किमित्युक्ते सा श्राह- कन्याकुण्डलपुरेशेजयवर्मगुणवत्योर्दुहिता सुशीला । सा सिंहपुरे हरिवर्मणे दातुं नीयमानै स्तत्पुरेशदुष्टवाक्येन हठात् धृता, नेच्छन्ती स्वभवनाद्बहिः कारागारे निहिता। सा यं यं नृपं पश्यति तं तं प्रति वदति मां मोचय, मां मोचयेति । तत्करुणश्रवणेन मोचनाग्रहेऽनर्थः स्यादिति निवारितोऽसि । स न यास्यामीति भणित्वा तत्र गतस्तया तं दृष्ट्राभाणि भो भो भ्रातरन्यायेन मां निग्राहयन्नास्ते दुष्टवाक्य इति मोचयेति । हे भगिनि, मोचयामीत्युक्त्वा तद्रक्षकान् निर्धाट यात्मरक्षकान् ददौ। तदा दुष्टवाक्यः सैन्येन निर्गत्य योर्बु लग्नो महासंग्रामे प्रवर्तमाने केनचित् व्यालस्य स्वरूपे निरूपिते व्यालो नीलगिरिमारुह्य स्वनाम गृह दुष्टवाक्यस्य संमुखमागतः । स स्वस्वामिनमव
तत्पश्चात् प्रतापंधर माताको समझा बुझाकर अपनी दोनों पत्नियों और व्यालादिकोंके साथ वहाँ से निकलकर क्रमसे उत्तर मथुराको प्राप्त हुआ। वहाँ नगरके बाहर पड़ाव डालकर व्याल नीलगिरि हाथीको पानी पिलानेके लिये गया। उधर नागकुमार भद्र हाथीपर चढ़कर कुछ सेवकोंके साथ नगरको देखनेके लिये उसके भीतर प्रविष्ट हुआ । वह राजमार्गसे जाता हुआ बीचमें देवदत्ता नामकी वेश्याके घरकी शोभाको देखकर उसके भीतर चला गया। वह भी यथायोग्य आदरके साथ उसे भीतर ले गयी। नागकुमार वहाँ कुछ समय तक स्थित रहा । पश्चात् जब वह देवदत्ताको यथायोग्य सम्मान देकर व सन्तुष्ट करके वहाँसे जाने लगा तब वेश्याने उससे कहा कि हे देव ! राजप्रासादके समीपमें न जाना । नागकुमारके द्वारा इसका कारण पूछनेपर देवदत्ता बोली- कन्याकुण्डलपुरके स्वामी जयवर्मा और गुणवतीके एक सुशीला नामकी पुत्री है। उसे जब सिंहपुरमें हरिवर्माको देनेके लिये ले जाया जा रहा था तब इस नगरके राजा दुष्टवाक्यने उसे जबरन् पकड़ लिया था । परन्तु उसने उसकी इच्छा नहीं की। तब उसने उसे अपने भवनके बाहर बन्दीगृहमें रख दिया है। वह जिस-जिस राजाको देखती है उस उससे अपनेको मुक्त करानेके लिये कहती है। उसके करुणापूर्ण आक्रन्दनको सुनकर उसके छुड़ानेका हठ करनेपर अनिष्ट हो सकता है । इसीलिये मैं तुम्हें वहाँ जानसे रोक रही हूँ। यह सुनकर नागकुमार उससे वहाँ न जानेके लिये कह करके भी वहाँ चला ही गया। तब उसको देखकर वह ( सुशीला ) बोली कि हे भ्रात ! यह दुष्टवाक्य राजा अन्यायपूर्वक मेरा निग्रह करा रहा है। मुझे उसके बन्धनसे मुक्त करा दीजिये। यह सुनकर नागकुमारने कहा कि हे बहिन ! मैं तुम्हें छुड़ा देता हूँ। यह कहकर उसने बन्दीगृहके पहरेदारों को हटाकर उक्त पुत्रीको बन्धनमुक्त करते हुए अपने रक्षकोंको दे दिया । इस समाचारको सुनकर दुष्टवाक्य सेनाके साथ आकर युद्धमें प्रवृत्त हो गया । इस प्रकारसे उन दोनोंमें भयानक युद्ध हुआ। वह युद्ध चल ही रहा था कि किसीने जाकर उसकी वार्ता व्यालसे कह दी। तब व्याल नीलगिरि हाथीके ऊपर चढ़कर अपने नामको लेता
१. बस्तया भणितः । २. ब कन्याकुब्जपुरेश । ३. पश नीयमानौ तत्पुरेश । ४. फग्रहेणानर्थ ब अहे. नानर्थः । ५. फ ब निग्रयन्नास्ते । ६. फ निद्घाटयात्म । ७. फ निर्गतर्योर्बु श निर्गतयोर्बु । ८. ब ग्रहन् । Jain Education International
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