Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१६० पुण्यानवकथाकोशम्
[४-८, ३३: मालाकारेण वृक्षोपरि चटितेन स तन्मारणं कुर्वाणो दृष्टो रात्रौ च निजभार्यायाः कथितम् । तत्प्रच्छन्नचरपुरुषेणाकर्ण्य राज्ञः कथितम् । प्रभाते मालाकार श्राकारितस्तेनैवं पुनः कथितम् । मदीयामाज्ञां मम पूत्रोऽपि खण्डयतीति रुष्टेन राज्ञा कोपालो भणितो बलकमारं नवखण्डं कारयेति । ततस्तं कुमारं मारणस्थानं नीत्वा मातङ्गमानेतुं ये गताः पुरुषास्तान् विलोक्य मातङ्गेनोक्तं प्रिये, 'मातङ्गोऽद्य ग्रामं गतः' इति कथय त्वमेतेषामित्युक्त्वा गृहकोणे प्रच्छन्नो भूत्वा स्थितः। तलारैश्चाकारिते मातङ्गया कथितम्-मातङ्गोऽद्य ग्रामं गतः। भणितं च तलारैः-स पापोऽपुण्यवानद्य ग्रामं गतः, कुमारमारणे तस्य बहुस्वर्णरत्नादिलाभो भवेत् । तेषां वचनमाकर्ण्य द्रव्यलुब्धया तया मातङ्गभीतया हस्तसंशया दर्शितो ग्रामं गत इति पुनः पुनर्भणन्त्या। ततस्तैस्तं गृहानिःसार्य तस्य मारणार्थ कुमारः समर्पितः । तेनोक्तम् - नाहमद्य चतुर्दशीदिने जीवघातं करोमि । ततस्तलारैः स नीत्वा राज्ञो दर्शितो देवायं राजकुमारं न मारयति । तेन राज्ञः कथितं देव, सर्पदष्टोऽहं मृतः श्मशाने निक्षिप्तः । सर्वौषधिमुनिशरीरस्पर्शिवायुना जोवितोऽहम् । तत्पावें चतुर्दशीदिवसे मया जीवाहिंसाणुव्रतं गृहोतमतोऽद्य न मारयामि । देवो यजानाति तत्करोतु । अद्य चाण्डालस्यापि व्रतमिति बहुत क्रोध आया । उसने उक्त मेढ़ेके मारनेवाले मनुष्यको खोजना प्रारम्भ किया। जब बगीचेमें वह मेढ़ा मारा जा रहा था तब वृक्षके ऊपर चढ़े हुए मालीने उसे देख लिया था। उसने रातमें मेढ़ेके मारने की बात अपनी स्त्रीसे कही। उसे वहाँ पासमें स्थित किसी गुप्तचरने सुन लिया था। उसने जाकर मेढ़ेके मारे जानेका वृत्तान्त राजासे कह दिया । तब प्रभातमें वह माली वहाँ बुलाया गया। उसने उसी प्रकारसे फिरसे भी वह वृत्तान्त कह दिया। मेरी आज्ञाको मेरा पुत्र ही भंग करता है, यह सोचकर राजाको क्रोध उत्पन्न हुआ। तब उसने कोतवालको बलकुमारके नौ खण्ड करानेकी आज्ञा दी। तत्पश्चात् कुमारको मारनेके स्थानमें ले जाकर जो राजपुरुष चाण्डालको लेनेके लिये गये थे उन्हें देखकर चाण्डालने अपनी पत्नीसे कहा कि हे प्रिये ! तुम इन पुरुषोंसे कह देना कि आज चाण्डाल गाँवको गया है। यह कहकर वह घरके एक कोनेमें छुप गया । तत्पश्चात् उन पुरुषों द्वारा चाण्डालके बुलाये जानेपर चाण्डालिनीने उनसे कह दिया कि वह आज गाँवको गया है। यह सुनकर उन पुरुषोंने कहा कि वह पापी पुण्यहीन है जो आज गाँवको गया है, आज राजकुमारका बध करनेपर उसे बहुत सुवर्ण और रत्नों आदिका लाभ होनेवाला था। उनके इस कथनको सुनकर उस चाण्डालिनीको धनका लोभ उत्पन्न हुआ। तब उसने चाण्डालके भयसे बार-बार यही कहा कि वह तो गाँवको गया है । परन्तु इसके साथ ही उसने हाथके संकेतसे उसे दिखला भी दिया। तब उन लोगोंने उसे घरके भीतरसे निकालकर मारनेके लिये उस कुमारको समर्पित कर दिया। इसपर चाण्डालने उनसे कहा कि मैं आज चतुर्दशीके दिन जीवहिंसा नहीं करता हूँ। तब उन लोगोंने उसे ले जाकर राजाको दिखलाते हुए कहा कि हे देव ! यह राजकुमारको नहीं मार रहा है। इसपर उस चाण्डालने राजासे कहा कि हे देव ! एक बार मुझे सपने काट लिया था। तब लोग मुझे मरा हुआ समझकर श्मशानमें ले गये । वहाँ मैं सौषधि ऋद्धिके धारक मुनिके शरीरसे संगत वायुके स्पर्शसे जीवित हो गया । तब मैंने उनके समीपमें जीवोंकी हिंसा न करने रूप अहिंसाणुव्रतको ग्रहण कर लिया था।
१. श तत्प्रच्छन्नं चर'। २. ब मारयाभि । ३. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श 'कथितो' । ४. ब-प्रतिपाठोऽयन् । श स्पर्शवायुना। ५. फ गृहीतमद्य । ६. ब तु । राडस्य चंडा।
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