Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
: ४-८, ३३ ]
४ शीलफलम् ८
१५९
चरणेन संस्पृष्टा उद्घाटिष्यन्ते । ताश्च प्रभाते तव चरणस्पृष्टा एवोद्घ टिष्यन्ते इति पादेन प्रतोली स्पर्श कुर्यास्त्वमिति भणित्वा राजादीनां तथा स्वप्नं दर्शयित्वा पत्तनप्रतोलीः कीलित्वा स्थिता सा नगरदेवता । प्रभाते प्रतोलीः कीलिता दृष्ट्वा राजादिभिस्तं स्वप्नं स्मृत्वा नगरसर्वस्त्रीचरणताडनं प्रतोलीनां कारितम्, न चैकापि प्रतोली कयाचिदप्युद्घाटिता । सर्वासां पश्चान्नीली तत्रोत्क्षिप्य नीता, तच्चरणस्पर्शात्सर्वा अपि उद्घाटिताः प्रतोत्यः । निर्दोषा जाता । एवं यक्षपूजिता नीली नृपादिभिरपि पूजिता । ईषद्विवेकिनी स्त्री बालापि देवपूज्याजनि शीलादन्यः किं न स्यादिति ॥ ७ ॥
[ ३३ ] निन्द्यः श्वपाकोऽपि सुरैरनेकैः संपूजितः शीलफलेन राजा । संस्पृश्यभावं ह्युपनीतवांस्तं शीलं ततोऽहं खलु पालयामि ||८||
अस्य कथा - अत्रैवार्यखण्डे 'सुरम्यदेशे' पोदनपुरे राजा महाबलः पुत्रो बलः । नन्दीश्वराष्ट्रस्यां राज्ञाष्ट्रदिनानि जीव श्रमारणघोषणायां कृतायां बलकुमारेण चात्यन्तमांसासक्तेन कंचिदपि पुरुषमपश्यता राजोद्याने राजकीयमेढकः प्रच्छन्नेन मारयित्वा संस्कार्य भक्षितः । राज्ञा च मेढकमारणमाकर्ण्य रुष्टेन मेषमारको गवेषयितुं प्रारब्धः । तदुद्याने
हूँ कि नगर के जो प्रधान द्वार बन्द हो रहे हैं वे किसी महासती के बायें पैर के स्पर्शसे खुलेंगे । इस प्रकार से वे प्रभात समय में तेरे चरण के स्पर्शसे ही खुलेंगे । इसीलिए तू अपने पाँव से उक्त द्वारोंका स्पर्श करना | यह कहकर वह नगरदेवता राजा आदिकों को वैसा स्वप्न दिखलाकर और नगर द्वारोंको कीलित करके स्थित हो गया । प्रातः काल के होनेपर उन नगरद्वारोंको कीलित देखकर राजा आदिको उस स्वप्नका स्मरण हुआ तब उन्होंने नगरकी समस्त स्त्रियोंको बुलाकर गोपुरोंसे उनके पाँवका स्पर्श कराया । परन्तु उनमें किसीके द्वारा एक भी गोपुरद्वार नहीं खुला, अन्तमें उन सबके पीछे नीलीको वहाँपर लाया गया। तब उसके चरणके स्पर्शसे वे सब द्वार
।
से
इस प्रकार उस
खुल गये । इससे उसका वह दोष दूर हो गया। यक्षीसे पूजित वह नीली राजा आदि महापुरुषोंके द्वारा भी पूजित हुई । जब भला थोड़े विवेकसे सहित वह स्त्री बाला भी शीलके प्रभावसे देवसे पूजित हुई है तब दूसरा पूर्णविवेकी भव्य जीव क्या उन देवादिकों से पूज्य न होगा अवश्य होगा ||७||
शीलके प्रभावसे अतिशय निन्दनीय चाण्डाल भी अनेक देवोंके द्वारा पूजित होकर राजाके द्वारा स्पर्श करनेके योग्य किया गया है । इसीलिये मैं उस शीलका परिपालन करता हूँ ॥८॥
इसकी कथा इस प्रकार है - इसी आर्यखण्डके भीतर पोदनपुर में राजा महाबल राज्य करता था । उसके पुत्रका नाम बल था । राजाने नन्दीश्वर ( अष्टाहिक ) पर्वकी अष्टमीको आठ दिन तक जीवहिंसा न करनेकी घोषणा करायी। उधर उसका पुत्र बलकुमार अतिशय मांसप्रिय था । उसने इन दिनोंमें किसी भी पुरुषको न देखकर गुप्त रीतिसे बगीचे में राजाके मेढ़ेका बध कराया और उसे पकाकर खाया । राजाको जब उस मेढेके बधका समाचार ज्ञात हुआ तब उसे
१. प उद्यरिप्यन्ते फ उद्घाटिष्यन्ते । २. फ ब यक्षा । ३. श देशो । ४. व पौदनपुरे । ५. ब- प्रतिपाठोऽयम् । श जीवमारणायां घोषणायां । ६, ब. मारणवार्तामाकर्ण्य । ७. ब मेंढकमारको ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org