Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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: ४-६, ३१ ]
४. शीलफलम् ६
१५५
समवसरणे बहुभिर्दीक्षितौ दम्पती | उद्यायनमुनि र्निवाणं ययौ । शीलवती समाधिना ब्रह्मस्वर्गेऽमरोऽजनि । एवं सर्वावस्थापि स्त्री शीलेनोभयभवपूज्या बभूवान्यो भव्यः किं न स्यात्पूज्य इति ॥५॥
[ ३१ ]
श्री वज्रकर्णो नृपतिर्महात्मा पूज्यो बभूवात्र बलाच्युताभ्याम् । शीलस्य रक्षापरभावयुक्तः शीलं ततोऽहं खलु पालयामि ||६||
'अस्य कथा— अत्रैवायोध्यायां राजा दशरथो देव्योऽपराजिता सुमित्रा कैका सुप्रभा चेति चतस्रः । तासां क्रमेण पुत्रा रामलक्ष्मण भरत शत्रुघ्नाः । तत्र रामलक्ष्मणौ बलगोविन्दौ । दशरथस्तपसे गच्छन् रामाय राज्यं ददानः कैकयागत्य पूर्ववरो याचितो । राशोक्तम्तपोविध्मं विहायान्य द्यावस्व । तया द्वादशवर्षाणि भरताय राज्ये याचिते राजा विस्मितो न किमपि वदति । पितृवचनपालनार्थं भरताय राज्यं दत्त्वा रामो मातरं संबोध्य लक्ष्मणसीताभ्यां सह निर्गत्य रात्रौ जिनालये परिजनं विसृज्य तत्रैव शयितः । प्रातः क्षुल्लकद्वारेण निर्गत्य सरयूं लङ्घयित्वा कियदन्तरे उपविष्टाः । तदनु आगतं परिजनं विसृज्य तत्रैव स्थिताः । कैश्विद्भरतायं रामादिगमने कथिते मात्रा सह गत्वा गमने निषिद्धेऽपि वर्षद्वयराज्य देकर वर्धमान जिनेन्द्र के समवसरण में रानी प्रभावती एवं अन्य बहुत-से जनों के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। वह उद्दायन मुनि मुक्तिको प्राप्त हुआ तथा शीलवती प्रभावती समाधि - पूर्वक शरीरको छोड़कर ब्रह्म स्वर्ग में देव हुई । इस प्रकार सब अवस्थावाली स्त्री भी जब शीलके प्रभावसे दोनों लोक में पूज्य हुई तब दूसरा भव्य जीव क्या पूज्य न होगा ? अवश्य होगा || ५ ||
यहाँ महात्मा श्री कर्ण राजा शीलकी रक्षाके उत्कृष्ट भावसे बलदेव और नारायणसे - पूजित हुआ है । इसीलिए मैं उस शीलका परिपालन करता हूँ ||६||
यहाँ अयोध्या में राजा दशरथ राज्य करता था । उसके अपराजिता, सुमित्रा, कैका और सुप्रभा नामकी चार रानियाँ थीं । उनके क्रमसे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ये चार पुत्र उत्पन्न हुए थे । इनमें से राम बलदेव और लक्ष्मण नारायण था । जब राजा दशरथ विरक्त होकर दीक्षा लेने के लिए उद्यत हुए, तब उन्होंने रामके लिए राज्य देना चाहा । परन्तु इस बीच में कैकाने आकर महाराज दशरथसे अपने पूर्व वरकी याचना की। तब राजाने उससे कहा मेरे तपमें बाधा न पहुँचाकर तुम अन्य कुछ भी माँग सकती हो। कैकाने बारह वर्षके लिए अपने पुत्र भरतको राज्य देनेकी याचना की । इससे राजा को बहुत आश्चर्य हुआ, वह इसका कुछ उत्तर ही न दे सका । तब रामने पिता के वचनकी रक्षा करते हुए भरतके लिए राज्य दे दिया और स्वयं माताको आश्वासन देकर लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या से निकल पड़े। इस प्रकार से जाते हुए वे रात्रि में जिनालय के भीतर सोये । कुटुम्बी जनको उन्होंने वहींसे वापिस किया । प्रातः काल के होनेपर वे जिनालय के छोटे द्वारसे निकलकर सरयू नदीको पार करते हुए कुछ दूर जाकर ठहर गये । तत्पश्चात् वे साथमें आये हुए भृत्यवर्ग व अन्य प्रजाजनों को वापिस करके वहीं पर स्थित रहे । इधर किन्हीं पुरुषों के कहनेपर भरत राम आदिके जानेके वृत्तान्तको जानकर माता के साथ उनके पास गया । उसने उन्हें वन जानेसे रोककर अयोध्या वापिस चलनेकी प्रार्थना की । परन्तु रामने
१. ब कि न स्यादिति । २. श देव्यपराजिता । ३. ब सुप्रभाश्चेति । ४. ब सरयुं । परिजनं व्याघोद्य[य]स्थिताः । ५. फ केचिद्भरताय ।
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