Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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:२–५, १३ ]
२. पश्वनमस्कारमन्त्रफलम् ४-५
७१
एकत्वादि भावयन् स्थितः । तावत्तत्राजाश्चरन्त्यः स्थिताः । तत्रैकाजायाः पादस्तत्र प्रविष्टः । स तेन घृतः । अजाकोलाहलमाकर्ण्य तद्रक्षकैः खन्यमाने शनैः खनन्त्वित्युक्तम् । तदनु साश्वर्यैः खनित्वा आकृष्टः । ततो गच्छन्नरण्येऽजगरमुल्लङ्घ्य गतः । अरण्ये महिषौ मारयितुमागतौ । तदा तरुमारूढः । ततो गच्छन्नदीतट्याङ्गविषयादागतरुद्रदत्त-हरिशिखादीनां * मिलितः ।
ततः सप्तापि श्रीपुरं गताः । प्रियदत्तेन मज्जनादिना प्रीणिताः पाथेयं च दत्तम् । तद्द्द्रव्येण काचवलयान् गृहीत्वा गान्धारविषये विक्रीताः । केनचिद्रुद्रदत्तायोपदेशो दत्तःछागनारुह्याजापथेन गत्वाग्रेतन पर्वतमस्तके चर्मभस्त्रिकान्तः प्रविश्य तन्मुखे स्यूते भेरुण्डा मांस्तूप इति मत्वा रत्नद्वीपं नयन्ति भक्षणार्थम्, यदा भूमौ स्थापयन्ति तदा छुरिकया तां विदार्य तत्र रत्नानि ग्राह्माणीति । ततोऽजान् गृहीत्वा अजपथमागताः । तत्र चारुदत्तेनावादि यूयं तिष्ठताहं मार्गमवलोक्यागच्छामि । चतुरङ्गुलरुन्द्रोभयपार्श्वे रसातलावधित्रुटितपर्वतमार्गेण गत्वा यावदागच्छति तावत्तस्य किमिति बृहद्वेला लग्नेति रुद्रदत्तादयोऽपि तन्मार्गेण गच्छन्तोऽन्तराले मिलिताः । चारुदत्तेन भणितमन्यायः कृतः । इदानीं मया
।
छोड़कर एकत्वादि भावनाओंका चिन्तन करता हुआ मध्यमें ही स्थित रह गया । उस समय वहाँ कुछ बकरियाँ चर रही थीं। उनमें से एक बकरीका पैर उस बिलके भीतर घुस गया । चारुदत्तने उसे पकड़ लिया । तब बकरीके कोलाहलको सुनकर उसके रक्षक आये और वहाँकी जमीन खोदने लगे । इस समय चारुदत्त ने उनसे धीरेसे खोदने के लिए कहा। इसे सुनकर उन लोगों को आश्चर्य हुआ । तब उन्होंने धीरेसे खोदकर चारुदत्तको बाहिर निकाला तत्पश्चात् वनके भीतर से जाता हुआ वह चारुदत्त एक अजगरको लाँघकर चला गया। इसी बीच में दो जंगली भैंसा उसको मारने के लिये आये । तब वह एक वृक्षके ऊपर चढ़ गया। फिर उसपर से उतरकर वह नदीके किनारेसे आगे जा रहा था कि उसे अंगदेशसे आये हुए चाचा रुद्रदत्त और हरिशिख आदि मित्र मिल गये । वहाँ से वे सातों श्रीपुरमें गये। वहाँ प्रियदत्तने उन्हें स्नानादिके द्वारा प्रसन्न करके मार्ग के लिए पाथेय (नाश्ता) भी दिया। उन लोगोंने उसके द्रव्यसे कांचकी चूड़ियोंको लेकर उन्हें गान्धार देश में बेच दिया । वहाँपर किसीने रुद्रदत्तको यह उपदेश दिया -- तुम लोग बकरोंपर सवार होकर अजामार्गसे ( बकरेके जाने योग्य संकुचित मार्गसे) आगे के पर्वतशिखरपर जाओ । वहाँ पर चमड़े की मसकें बनाकर उनके भीतर स्थित होते हुए मुँहको सी देना । उनको भेरुण्ड पक्षी मांसके ढेर समझकर खानेके लिए रत्नद्वीप में ले जायेंगे । वे जैसे ही उन्हें भूमिके ऊपर रक्खें वैसे ही छुरीसे काटकर तुम सब उनके भीतरसे बाहिर निकल आना । इस प्रकार से रत्नद्वीपमें पहुँच करके तुम सब वहाँसे रत्नोंको प्राप्त कर सकोगे । इस उपदेश के अनुसार वे बकरों को ले करके अजामार्गमें आ पहुँचे । वहाँ चारुदत्तने रुद्रदत्त आदि से कहा कि आप लोग यहीं पर बैठें, मैं आगे के मार्गको देखकर वापिस आता हूँ। यह कहकर चारुदत्त चार अंगुलमात्र विस्तृत एवं दोनों पार्श्वभागों में पाताल तक टूटे हुए मार्गसे जाकर वापिस आ ही रहा था कि रुद्रदत्तादि भी 'चारुदत्त को इतनी देर क्यों हुई' यह सोचकर उसी मार्गसे आगे चल दिये, उनका मिलाप चारुदत्तसे मार्गके मध्य में हुआ । तब चारुदत्तने कहा कि आप लोगोंने यह योग्य नहीं किया है,
१. फ० मुल्लंघ्यतः ततोऽरण्य । २ प महियो । ४. फ विषयादागतः । ४ प श हरिसिपादीनां । ५. प मिलत: । ६. ब मांसश्रूपाश मांससूपा । ७. श रुद्रो० ।
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