Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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: ३–४, २१-२२ ]
३. श्रुतोपयोगफलम् ४-५
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रेवतोमणिमाला पद्मिनी सुशीला रोहिणी सुलोचनासुदामाप्रभृतिद्वात्रिंशदिभ्येश्वर कन्याभिः प्रास्मदस्यैवोपरि विवाहं चकार, बहिर्विवाहमण्डपे उचितान्वयं' च । तासामेकैकं रजतमयं प्रासादमदत्त । एवं स सुकुमारो विभूत्यास्थात् । तद्दीक्षाभयान्मात्रा गृहे मुनिप्रवेशो निषिद्धः । एकदा केनचित् ग्रामान्तिकेनानघ रत्नकम्बलो राज्ञो दर्शितः । तेन गृहीतुमशक्तेन विसर्जितो' यशोभद्रया तनुजार्थं गृहीतः । स तं विलोक्य कर्कशोऽयं ममायोग्या [ग्य ] इत्यभणत् । तदा तया द्वात्रिंशद्वधूनां पादुकाः कारिताः । तत्र सुदामा ते पादयोर्निक्षिप्य स्वभवनस्योपरिमभूमौ पश्चिमद्वारमण्डपे उपविश्य ते तत्रैव विस्मृत्यान्तः प्रविष्टा । तत्रैकां पादुकां मांसभ्रान्त्या गृध्रो निनाय, राजभवनशिखरे उपविश्य चञ्च्वा हत्वा कोपेन तत्प्राङ्गणे चिक्षेप | राज्ञा " विलोक्य साश्चर्येण किमिति पृष्ठे केनचित्सुकुमारस्य वनितापादुकेति कथितेऽवनीशः कौतुकेन तं द्रष्टुं चचाल । सा विभूत्या स्वगृहमवी विशदवदच्च – देव, किमित्यागमनम् । सोऽभणत् कुमारान्वेषणार्थम् । तदा भूपं मध्यमभूमावुपावीविशत्, नन्दनमानिनाय दर्शयति स्म । राजा तं विलोक्यातिहृष्टोऽर्धासने उपवेशितवान् । तया
तब यशोभद्राने उसका विवाह चतुरिका, चित्रा, रेवती, मणिमाला, पद्मिनी, सुशीला, रोहिणी, सुलोचना और सुदामा आदि बत्तीस धनिककन्याओंके साथ उस भवनके भीतर से कर दिया तथा भवन के बाहर जो विवाह मण्डप बनवाया गया था वहाँपर उसने समुचित विवाहोत्सव भी किया । यशोभद्राने सुकुमारकी उन पत्नियोंको एक एक रजतमय भवन दे दिया । इस प्रकारसे वह सुकुमार अतिशय विभूतिके साथ वहाँ भोगोंका अनुभव कर रहा था । उसके दीक्षा ले लेनेके भय माताने अपने भवनमें मुनिके प्रवेशको रोक दिया था ।
एक दिन गाँवकी सीमा में रहनेवाले किसी व्यापारीने आकर एक रत्नमय अमूल्य कम्बल राजाको दिखलाया | परन्तु राजाने उसका मूल्य न दे सकनेके कारण उस कम्बलको न लेकर व्यापारीको वापिस कर दिया। तब यशोभद्राने उसका समुचित मूल्य देकर उसे अपने पुत्र के लिये ले लिया | परन्तु सुकुमारने उसे देखकर कहा कि यह कठोर है, मेरे योग्य नहीं है । तब यशोभद्राने उक्त रत्नकम्बलकी अपनी बत्तीस पुत्रवधुओंके लिये पादुका ( जूतियाँ ) बनवा दीं। उनमें से सुदामा एक दिन उन पादुकाओंको पाँवोंमें पहिनकर अपने भवन के ऊपर ( छतपर ) गई और वहाँ पश्चिमद्वारके मण्डपमें कुछ समय बैठी रही । फिर वह उन पादुकाओं को वहीं भूलकर महलके भीतर चली गई । उनमें से एक पादुकाको मांस समझकर गीध ले गया । उसने राजभवन के शिखरपर बैठकर चोंचसे उसे तोड़ा और क्रोधवश राजांगण में फेंक दिया । राजाने उसे आश्चर्यपूर्वक देखकर पूछा कि यह क्या है ? तब किसीने उससे कहा कि यह सुकुमारकी पत्नी की पादुका है । यह सुनकर राजा कैतूहलके साथ सुकुमारको देखनेके लिये चल दिया । उसे यशो सुभद्राने बड़ी विभूति के साथ भवन के भीतर प्रविष्ट कराया । फिर वह उससे बोली कि हे देव ! आपका शुभागमन कैसे हुआ है ? उत्तरमें राजाने कहा कि मैं सुकुमारको देखनेके लिये आया हूँ | तब यशोसुभद्राने उसे भवन के मध्यम खण्डमें बैठाया और फिर पुत्रको लाकर उसे दिखलाया । राजाने उसे देखा और प्रसन्न होकर अपने आधे आसनपर बैठा लिया। तत्पश्चात् यशोभद्राने राजासे
१. प श उचितान्वायं ब उचितात्रयं । २. ब केनचिद्भ्रमं तुकेना । ३. ब- प्रतिपाठोऽयम् । श तेन ने गृहीतमशक्तेन विराजिते । ४. श सत्यं । ५. ब- प्रतिपाठोऽयम् । श ममायोग्येत्यभणत् । ६. श 'ते' नास्ति । ७. श राजा । ८. पश उपवेष्टितवान् फ उपविष्टितवान् ।
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