Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यास्रवकथाकोशम्
[ ३-४, २१-२२ यशोभद्राच्युतमन्याः सौधर्मादितत्पर्यन्तकल्पेषु देवा देव्यश्च बभूवुरिति । एवं माययागमश्रुतावपि सूर्यमित्रः सर्वशोऽभूत, मातङ्गी सुकुमारोऽजनि तद्भावनयान्ये किं लोकाधिपा न स्युरिति ॥ ४-५॥
[२३ ) लाक्षावासनिवासकोऽपि मलिनश्चौरः सदा रौद्रधी
श्चाण्डालादमलोगमस्य वचनं श्रुत्वा ततः शर्मदम् । सर्वज्ञो भवति स्म देवमहितो भीमाह्वयः सौख्यदो ।
धन्योऽहं जिनदेवकः सुचरणस्तत्प्राप्तितो भूतले ॥ ६ ॥ अस्य कथा- सौधर्मकल्पे कनकप्रभविमाने कनकप्रभनामा देवः कनकमालादेव्या सह नन्दीश्वरद्वीपं सर्वदेवैर्गत्वा तत्पूजानन्तरं देवेषु स्वर्गलोकं गतेषु स्वयं जम्बूद्वीपपूर्वविदेहे. पुष्कलावतीविषये पुण्डरीकिणीपुरवाह्यस्थितजगत्पालनामधेयचक्रेश्वरकारितकनकजिनालयं पूजयितुं जगाम । तत्र शिवंकरोद्याने स्थितद्वादशसहस्रयतिभिः सुव्रताचार्य ददर्श तन्मध्ये भीमसाधुनामानमृर्षि च। तं स्वजन्मान्तरशत्रु विबुध्य तं निःशल्यं बोर्बु स सवनितो नरो भूत्वा गणिनं समुदायं च वन्दित्वा भीमसाधुमपृच्छद्धर्मम् । सोऽवोचदहं मुखोऽन्यं प्रच्छ। तर्हि त्वं किमिति मुनिरभूत् । स्वातीतभवानाकलय्य यांतरभवम् । ताहि प्राप्त हुए। शेष सब यथायोग्य सौधर्म स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान तक पहुँचे । यशोभद्रा अच्युत स्वर्गमें तथा शेष स्त्रियाँ सौधर्मसे लेकर यथायोग्य अच्युत स्वर्ग तक देव व देवियाँ हुई। इस प्रकार मायाचारसे भी जब सूर्यमित्र आगमको सुनकर सर्वज्ञ तथा वह चाण्डाली सुकुमार हुई है तब क्या अन्य भव्य जीव सुरुचिपूर्वक उसके चिन्तनसे लोकके स्वामी नहीं होंगे ? अवश्य होंगे ॥ ४-५ ॥
लाखके घरमें स्थित होकर निरन्तर क्रूर परिणाम रखनेवाला जो निकृष्ट चोर चाण्डालसे निर्मल एवं सुखदायक आगमके वचनको सुनकर भीम नामक केवली हुआ, जिसकी देवोंने आकर पूजा की। इसीलिए जिन भगवान्में भक्ति रखनेवाला मैं उस आगमकी प्राप्तिसे निर्मल चारित्रको धारण करता हुआ पृथिवीतलपर कृतार्थ होता हूँ ॥ ६ ॥
इसकी कथा इस प्रकार है- सौधर्म कल्पके भीतर कनकप्रभ विमानमें स्थित कनकप्रभ नामका देव कनकमाला देवी और सब देवोंके साथ नन्दीश्वर द्वीपमें गया । वहाँ उसने जिन-पूजा की। तत्पश्चात् अन्य सब देवोंके स्वर्गलोक चले जानेपर वह स्वयं जम्बूद्वीप सम्बन्धी पूर्व विदेहके भीतर पुष्कलावती देशमें स्थित पुण्डरीकिणी पुरके बाह्य भागस्थ कनक जिनालयकी पूजा करनेके लिये गया। यह जिनालय जगत्पाल नामक चक्रवर्तीके द्वारा निर्मित कराया गया था। वहाँ उसने शिवंकर उद्यानमें स्थित बारह हजार मुनियोंके साथ सुव्रताचार्य और उस संघके मध्यमें स्थित भीमसाधु नामक ऋषिको भी देखा। उसने उसको अपने पूर्व जन्मका शत्रु जानकर उसकी निःशल्यताको ज्ञात करनेके लिये कनकमालाके साथ मनुष्यका वेष धारण किया । फिर उसने आचार्य और संघकी वन्दना करके भीमसाधुसे धर्मके विषयमें पूछा । तब भीमसाधुने कहा कि मैं मूर्ख हूँ, उसके सम्बन्धमें किसी दूसरेसे पूछो । इसपर पुरुष वेषधारी देव बोला कि तो फिर तुम मुनि क्यों हुए हो ? उसने उत्तर दिया कि अपने पूर्व भवोंको जानकर मैं मुनि हुआ हूँ। यह
१. प चंडालादमला, शचंडालार्दमला । २. फ तं निःशल्यंत्वं ब तनिःशल्य [तन्निःशल्यत्वं] ।
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