Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यात्रवकथाकोशम्
[ ३-२, १९ : दशरथादिभिर्विभूत्या पुरं प्रवेशितः। प्राघूर्णक्रियानन्तरं बालक्रीडाद्यनेकविनोदान दर्शयित्वा प्रभामण्डल: पित्रादिभिः स्वपुरं गत्वा कनकाय तद्राज्यं समर्प्य जनकेन सह रथनूपुरचक्रवाले पुरे स्थितः । विद्याधरचक्री सर्वगुणाधारोऽजनि इति मुनिवचनेन हंसोऽप्येवंविधोऽभून्नरः किं न स्यात् ॥२॥
[२०] संसारे खलु कर्मदुःखबहुले नानाशरीरात्मके प्रख्यातोज्ज्वलकीर्तिको यममुनि?रोपसर्गस्य जित् । श्लोकैः खण्डकनामकैरपि विदां किं कथ्यते देहिनां
धन्योऽहं जिनदेवकः सुचरणस्तत्प्राप्तितो भूतले ॥३॥ अस्य कथा--ओष्ट्रविषये धर्मनगरे राजा यमः सर्वशास्त्रज्ञो राज्ञी धनमती पुत्रो गर्दभः पुत्री कोणिका। अन्यासां राज्ञीनां पुत्राणां पञ्च शतानि। मन्त्री दीर्घनामा । निमित्तिना आदेशः कृतो यः कोणिकां परिणेष्यति स सर्वभूमिपतिर्भविष्यति । ततो यमेन कोणिका भूमिगृहे प्रच्छन्ना धृता । प्रतिचारिका निवारिता न कस्यापि कथयन्ति ताम् । एकदा पञ्चशतयतिभिः सहागतस्य सुधर्ममुनेर्वन्दनार्थ जनं गच्छन्तमालोक्य यमो ज्ञानगर्वान्मुनीनां निन्दां कुर्वाणस्त
जा पहुँचा। तब दशरथ आदि बड़ी विभूतिके साथ उसे नगरके भीतर ले आये। उन सबने जनकका खूब अतिथि-सत्कार किया। तत्पश्चात् प्रभामण्डल बाल-क्रीड़ा आदि अनेक विनोदोंको दिखला करके पिता आदिकों के साथ अपने नगरको गया। वह कनकको वहाँका राज्य देकर जनकके साथ रथनू पुर-चक्रवालपुरमें जाकर स्थित हुआ। वह सर्व गुणोंसे सम्पन्न होकर विद्याधरोंका चक्रवर्ती हुआ। इस प्रकार मुनिके वचनोंको सुनकर जब हंस भी ऐसी समृद्धिको प्राप्त हुआ है तब उसे सुनकर मनुष्य क्या न होगा ? वह तो मुक्तिको भी प्राप्त कर सकता है ॥२॥
अनेक जन्म-मरणरूप यह संसार कर्मजनित बहुत दुःखोंसे व्याप्त है । इस भूमण्डलपर जब यम मुनि कुछ खण्डक श्लोकोंसे ही घोर उपसर्गके विजेता होकर निर्मल कीर्तिके प्रसारक हुए हैं तब भला अन्य विद्वान् मनुष्योंके विषयमें क्या कहा जाय ? मैं पृथिवीतलपर उस जिनवाणीकी प्राप्तिसे जिनदेवका भक्त होकर सम्यक्चारित्रको धारण करता हुआ कृतार्थ होता हूँ ॥३॥
इसकी कथा- ओष्ट्र ( उष्ट्र ) देशके अन्तर्गत धर्मनगरमें यम नामका राजा राज्य करता था। वह समस्त शास्त्रोंका ज्ञाता था। उसकी पत्नीका नाम धनमती था। इनके गर्दभ नामका एक पुत्र तथा कोणिका नामकी पुत्री थी। उसके पाँच सौ पुत्र और भी थे जो अन्य रानियोंसे उत्पन्न हुए थे। उक्त राजाके दीर्घ नामका मंत्री था। किसी ज्योतिषीने राजाको यह सूचना दी थी कि जो कोई इस कोणिकाके साथ विवाह करेगा वह समस्त पृथिवीका स्वामी होगा । इसीलिये उसने कोणिकाको तलगृहके भीतर गुप्तरूपसे रख रक्खा था। उसने परिचयां करनेवाली सब स्त्रियोंको वैसी सूचना भी कर दी थी। इसीलिये वे कभी किसीसे कोणिकाकी बातको नहीं कहती थीं । एक दिन वहाँ पाँच सौ मुनियोंके साथ सुधर्म मुनि आये । उनकी वंदनाके निमित्त जाते हुए जनसमूहको देखकर यम राजाके हृदयमें अभिमानका प्रादुर्भाव हुआ। मुनियोंकी निन्दा करता
१. फ प्राणिकक्रिया ब प्राघूर्णकक्रिया । २. प श विनोदात् ।
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