Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्या लवकथाकोशम्
[ ३-४, २१-२२ :
न जानामि । श्रपरेण भण्यते तेनानीतमेण्टिकापिशितं कुर्वन्नहं स्थितस्तदा तत्र किमभूदिति न वेद्मि । चतुर्थोऽब्रवीदहं तन्मृतकमेवावलोकयन् स्थितो द्रव्यस्य चिन्ता मे नास्तीति केन नीतमिति न वेद्यहम् । सुमत्योक्तं भवतां दोषो नास्तीति । इदानीं मे आलस्यं वर्तते, कथामेकां कथयतेति । तैरवादि वयं न जानी मस्त्वं कथय । सा कथयति - पाटलीपुत्रे वैश्यो धनदत्तो पुत्री सुदामा । कन्या सा एकदा स्वभवन पश्चिमोद्यानस्थं सरः पादप्रक्षालनार्थं गता । ग्राहपिल्ल केन पादे धृताऽत्यन्तभीता स्वमैथुनिकं धनदेवमपश्यत् । सा तदावोचदहो धनदेव, मां ग्राहो गृह्णाति स्म, त्वं मोचय । तेनावादि बर्करेण मोचयामि यदि भणितं करोषि । सा बभाण कीदृशं तत् । स जजल्प- ते विवाहदिने रात्रौ लग्नकाले वस्त्राभरणैर्मदन्तिकमागन्तव्यमिति । श्रभ्युपगतं तया । स तस्या धर्महस्तं गृहीत्वा मोचितवान् । स्वविवाहदिने सा स्वधर्महस्तमोचनाय रात्रौ तदापणं चलिता । अन्तरे कश्चिच्चौरस्तदाभरणादिकं ययाचे । तयोक्तमेतैः सार्धं मया क्वापि गन्तव्यं ततः श्रागमनावसरे दास्यामीति, तस्यापि धर्महस्तं दत्त्वाऽग्रे जगाम । चौरः कौतुकेन तिरोभूत्वा पृष्ठतो लग्नस्तावत्कश्चिद्राक्षसो मिलितः । स भाण - हे नारि, इष्टदेवतां स्मर गिलामि त्वाम् । साऽवदत्प्रतिज्ञया क्वापि गच्छामि, ततः यह मैं नहीं जानता हूँ | तीसरा बोला कि मैं उसके द्वारा लाई हुई भेड़का मांस निकाल रहा था । उस समय वहाँ क्या हुआ, यह मुझे ज्ञात नहीं है । अन्तमें चौथेने कहा कि मैं उस मुर्दाकी ओर ही देख रहा था, मुझे तब उस द्रव्यका ध्यान ही नहीं था । इसीलिये उसे किसने लिया है, इसे मैं नहीं जानता हूँ। यह सब सुनकर सुमतिने कहा कि आप लोगोंका कुछ दोष नहीं है । मुझे इस समय आलस्य आ रहा है, अतएव किसी एक कथाको कहो । तब उन लोगोंने कहा कि हम नहीं जानते हैं, तुम ही कहो । तब वह कहने लगी
पाटलीपुत्र में एक धनदत्त नामका वैश्य था । उसके एक सुदामा नामकी एक दिन अपने भवन के पिछले भाग में स्थित सरोवर में पाँव धोनेके लिये गई थी । के बच्चेने उसके पाँचको पकड़ लिया था । तब उसने अतिशय डरकर अपने धनदेव नामक मामा के लड़के ( या साले ) की ओर देखते हुए उससे कहा कि हे धनदेव ! मुझे मगर ने पकड़ लिया है, उससे छुड़ाओ । वह मजाकमें बोला कि यदि तुम मेरा कहना मानो तो मैं तुम्हें उस मगरसे छुड़ा देता हूँ । इसपर सुदामाने उससे पूछा कि तुम्हारा वह कहना क्या है ? इसके उत्तर में उसने कहा कि तुम अपने विवाहके दिन लमके समय में वस्त्राभरणोंके साथ मेरे पास आओ । सुदामाने उसकी इस बात को स्वीकार कर लिया। तब उसने उसके धर्महस्त ( प्रतिज्ञावचन ) को ग्रहण करके उसे मगरसे छुड़ाया । तत्पश्चात् जब उसके विवाहका समय आया तब वह अपने दिये हुए उपर्युक्त वचनसे छुटकारा पानेके लिये रात्रि में धनदेवकी दुकानकी ओर चल दी । मार्गमें जाते हुए उससे किसी चोरने आभूषण आदि माँगे । तब उसने उससे कहा कि इन आभूषणोंके साथ मुझे कहीं पर जाना है । अतएव मैं तुम्हें इन्हें वापिस आते समय दूँगी । इस प्रकारसे वह उसको भी धर्महस्त देकर आगे गई । तब वह चोर कौतुकसे छुपकर उसके पीछे लग गया। आगे जानेपर उसे एक राक्षस मिला । वह उससे बोला कि हे स्त्री ! तू अपने इष्ट देवताका स्मरण कर, मैं तुझे खाता हूँ। वह बोली कि मैं अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार कहीं जा रही हूँ,
१. बगता सा पुत्री इति ग्राह
नास्ति । ४. ब वर्करेण ।
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पुत्री थी। वह वहाँ एक मगर -
।
२. प 'वोचदहो हो धनदेव श वोचदोहो भो धनदेव । ३. ब 'त्वं'
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