Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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: ३–४, २१-२२ ]
३. श्रुतोपयोगफलम् ४-५
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कथमिति चेत् वत्सदेशे कौशाम्ध्यां राजातिबलो देवी मनोहरी पुरोहितो द्विज: सोमशर्मा वनिता काश्यपी पुत्रावग्निभूतिवायुभूती केनाप्युपायेन नापठताम् । पितरि मृते राज्ञाजानता तत्पदं ताभ्यामदायि । एवं तिष्ठतोरेकदानेकवादिमदमञ्जनेन नानादेशपरिभ्रमणशीलेन विजयजिह्वनामवादिना तद्राजालयद्वारे पत्रमवलम्बितम् । वादाधिकारः पुरोहितस्येत्यन्यवादिना न गृहीतम् । तद्राज्ञा तयोरादेशो दत्तः पत्रं गृह्णीतां भित्तां चेतिं । ताभ्यां गृहीतं पाटितं च । ततो राजा मूर्खाविति विबुध्य तत्पदमादाय तद्दायादसोमिलायादत्त तावतिदुःखितावध्येतुं देशान्तरं चेलतुः । तदा मात्रावादि यद्येवं युवयोराग्रहोऽस्ति तर्हि राजगृहपुरे राजा सुबलो बल्लभा सुप्रभा तत्पुरोहितो माता सूर्यमित्रनामातिविद्वान्, तत्समीपं याव इति । तत्र ययतुस्तं च ददृशतुर्वृत्तान्तं कथयांचक्रतुः । स मातुलः मनसि दध्यौ पितुर्निकटे सुग्रासादिप्रभावान्नाधीतावहमपि तद्दास्यामि चेदत्रापि क्रीडिष्यतोऽध्ययनं न स्यादिति मत्वाऽवदत्- मे भगिनी नास्तीति कुतो भागिनेयौ युवाम् । यद्यध्येष्येथें भिक्षाया भुक्त्वा तर्हि अध्यापयिष्यामीति । तौ तथाधीतसकलशास्त्रौ स्वपुरं चलितौ
वत्स देश के भीतर कौशाम्बी नगरीमें अतिबल नामका राजा राज्य करता था । उसकी पत्नीका नाम मनोहरी था । उसका पुरोहित सोमशर्मा नामका एक ब्राह्मण था । इसकी पत्नीका नाम काश्यपी था । इस पुरोहितके अभिभूति और वायुभूति नामके दो पुत्र थे । इनको सोमशर्मा -
पढ़ाने का बहुत कुछ प्रयत्न किया, परन्तु वे पढ़ नहीं सके। जब उनका पिता मरा तब राजाको उनके विषय में कुछ परिचय प्राप्त नहीं था । इसीलिये उसने अज्ञानता से इनके लिये पुरोहितका पद दे दिया । इस प्रकार से उनका सुखपूर्वक समय बीतने लगा । एक समय वहाँ अनेक वादियों के अभिमानको चूर्ण करनेवाला विजयजिह्न नामका एक वादी आया । वह वादार्थी होकर अनेक देशों में घूमा था । वहाँ पहुँचकर उसने राजप्रासादके द्वारपर एक वादसूचक पत्र लगा दिया । वादका अधिकार पुरोहितको प्राप्त होनेसे अन्य किसी वादीने उसके पत्र ( चैलेंज ) को स्वीकार नहीं किया । तब अतिबल राजाने उन दोनोंके लिये उस पत्रको स्वीकार कर उक्त वादीके साथ विवाद करने की आज्ञा दी । इसपर उन दोनोंने उस पत्रको लेकर फाड़ डाला। तब राजाको ज्ञात हुआ कि ये दोनों ही मूर्ख हैं । इससे उसने उन दोनोंसे पुरोहितके पदको छीनकर उसे किसी सोमिल नामक उनके सगोत्री बन्धुको दे दिया । उन दोनों को इस घटना से बहुत दुख हुआ । फिर वे शिक्षा प्राप्त करनेके लिये देशान्तर जानेको उद्यत हुए । तब उसकी माताने उनसे कहा कि यदि तुम दोनोंका ऐसा दृढ़ निश्चय है तो तुम राजगृह नगर में जाओ । वहाँ सुबल नामका राजा राज्य करता है । रानीका नाम सुप्रभा है। उक्त राजाके यहाँ जो अतिशय विद्वान् सूर्यमित्र नामका पुरोहित है वह मेरा भाई है । तुम दोनों उसके पास जाओ । तदनुसार वे दोनों वहाँ जाकर अपने मामा से मिले । उन्होंने उससे अपने सब वृत्तान्तको कह दिया। तब मामाने मनमें विचार किया कि इन दोनोंने पिताके पास उत्तम भोजनादिको पाकर अध्ययन नहीं किया है । यदि मैं भी इन्हें सुरुचिपूर्ण भोजनादि देता हूँ तो फिर यहाँ भी उनका समय खेल-कूद में ही जावेगा और वे अध्ययन नहीं कर सकेंगे । बस, यही सोचकर उसने उन दोनोंसे कहा कि मेरे कोई बहिन ही नहीं है, फिर तुम भानजे कैसे हो सकते हो ? यदि तुम भिक्षासे भोजन करके अध्ययन
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१. फ भिन्तां चेति । २ ब पाट्टितम् । ३. ब 'मातुलः ' नास्ति । ४. ब यद्यध्येष्येथ |
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