Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यात्रवकथाकोशम्
[ २-६, १७
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नैव विधिनान्यानपि द्वारपालान् वशीचकार । सुदर्शनोऽष्टम्यां कृतोपवासोऽस्तमनसमये श्मशाने रात्रौ प्रतिमायोगेनास्थात् । रात्रौ तत्र पण्डिता जगामावादीच्च धन्योऽसि त्वं यदभयमती तवानुरक्ता बभूवागच्छ तया दिव्यभोगान् भुङ्क्ष्वेत्यादिनानावचनैश्चित्तविक्षेपेऽप्यक्षोभो यदा तदा तमुत्थाप्य स्वस्कन्धमारोप्यानीय तच्छय्यागृहे चिक्षेप | अभयमती बहुप्रकारस्त्रीविकारैस्तच्चित्तं चालयितुं न शक्ता, उद्विज्य पण्डितां प्रत्यवददमुं तत्रैव निक्षिपेति । सा बहिः प्रभातावसरं निरीक्ष्य बभाण- प्रत्यूषं जातं नेतुं नायाति, किं क्रियते । ततः शय्यागृह एव कायोत्सर्गेण तं व्यवस्थाप्याभयमती स्वदेहे नखक्षतान् कृत्वा पूत्कारं व्यधात् मे शीलवत्याः शरीरमनेन विध्वंसितमिति । ततः केनचिद्राज्ञः कथितं सुदर्शन एवं कृतवानिति । तेन भृत्यानामादेशो दत्तस्तं पितृवने मारयतेति । ततस्ते केशग्रहेणाकृष्य तं तत्र निम्युरुपवेश्य शिरोहननाय येनासिना कृतो घातः स तत्कण्ठे हारो बभूव । अन्यान्यपि मुक्तप्रहरणानि व्रतप्रभावेन पुष्पादिरूपैः परिणामितानि । ततः कश्चित् यक्षः श्रासन कम्पात् तदुपसर्गमवबुध्यागत्य भृत्यान् कीलितवान् । तदाकर्ण्य सुदर्शनेनैव मन्त्रेण कीलिता इति मत्वा रुष्टेन राज्ञान्येऽपि प्रेषिताः । तेऽपि तेन कीलिताः । ततोऽतिबहुबलेन राजा स्वयं
सरीकेसे अन्य द्वारपालोंको भी अपने वशमें कर लिया । इधर सुदर्शन सेठ अष्टमीका उपवास करके सूर्यास्त हो जानेपर रात्रि के समय स्मशानमें प्रतिमायोगसे स्थित ( समाधिस्थ ) था । उस समय रातमें पण्डिता वहाँ गई और उससे बोली कि तुम धन्य हो जो अभयमती तुम्हारे ऊपर अनुरक्त हुई है, तुम चलकर उसके साथ दिव्य भोगोंका अनुभव करो । इस प्रकार से पण्डित अनेक मधुर वचनोंके द्वारा उसे आकृष्ट किया, परन्तु वह जब निश्चल ही रहा तब उसने उसे उठाकर अपने कन्धे पर रख लिया और फिर महलमें लाकर अभयमतीके शयनागार में छोड़ दिया । तब अभयमतीने उसके समक्ष अनेक प्रकारकी स्त्रीसुलभ कामोद्दीपक चेष्टाएँ कीं, परन्तु वह उसके चित्तको विचलित करने में समर्थ नहीं हुई । अन्तमें उद्विग्न होकर उसने पण्डिता से कहा कि इसे ले जाकर वहीं पर छोड़ आओ । पण्डिताने जो बाहर दृष्टिपात किया तो प्रातः काल हो चुका था । तब उसने कहा कि इस समय सबेरा हो चुका है, अब उसे ले जाना सम्भव नहीं है, क्या किया जाय यह देखकर अभयमती किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई । अन्तमें उसने उसे शयनागार में ही कायोत्सर्ग रखकर अपने शरीरको नखोंसे नोंच डाला । फिर वह चिल्लाने लगी कि इसने मुझ शीलवती के शरीर को क्षत-विक्षत कर डाला है । तब किसीने जाकर राजासे कह दिया कि सुदर्शनने ऐसा अकार्य किया हैं । तब राजाने सेवकोंको आज्ञा दी कि इसे स्मशानमें ले जाकर मार डालो | तदनुसार वे उसके बालों को खींचकर उसे स्मशानमें ले गये । फिर वहाँ बैठा करके उन्होंने उसके शिरको काटनेके लिए जिस तलवारका वार किया वह उसके गलेमें जाकर हार बन गई । इस प्रकारसे और भी जितने प्रहार किये गये वे सब ही उसके व्रत के प्रभावसे पुष्पा - दिकों के स्वरूप परिणत होते गये। तब कोई यक्ष अपने आसनके कम्पित होनेसे उसके उपसर्गको ज्ञात करके वहाँ आ पहुँचा। उसने उन राजपुरुषोंको कीलित कर दिया । यह समाचार सुनकर राजाने समझा कि सुदर्शनने ही उन्हें मंत्रके द्वारा कीलित कर दिया है। इससे उसे बहुत क्रोध आया । तब उसने दूसरे कितने ही सेवकों को भेजा । किन्तु उन्हें भी उसने कीलित कर दिया । तत्पश्चात् राजा स्वयं ही बहुत-सी सेनाके साथ निकल पड़ा । उधर मायावी यक्ष भी चतुरंग
१. ब. रात्रि० । २. ब सोऽसिस्तत्कण्ठे |
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