Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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:२-६, १७]
२. पञ्चनमस्कारमन्त्रफलम् ६ परि प्रेषितः । तं स जिगाय। ततो राजा स्वयं चचाल । तं निवार्य लोकपालो जगाम रणे तं जधान । स मृत्वा वत्सदेशे कस्मिश्चित् गोष्ठे श्वा बभूव । श्राभीर्या सह कौशाम्बीपुरमियाय । तत्रैव जिनगृहमाश्रित्यवास्थात् । तत्रापि मृत्वा चम्पायां लोध इति नरजातिविशेषः सिंहप्रियसिंहिन्योः पुत्रोऽजनि । बालस्यैव पितरौ मम्रतुः । सोऽपि दिनान्तरैर्ममारास्यामेव चम्पायां वृषभदासस्य सुभगनामा गोपालोऽभूञ्चारणान्तिकं णमो अरहंताणं' इति मन्त्रं प्राप्य सर्वक्रियासु तं प्रथममुच्चारयन् वर्तते स्म । आयुरन्ते गङ्गायां मृत्वा निदानेन त्वं जातोऽसि । सा कुरङ्गी तनुं विहाय वाराणस्यां महिषी जाता। तत्रापि मृत्वा चम्पायां रजकसांवलयशोमत्योर्दुहिता वत्सिनी भूत्वार्जिकासंसर्गेणार्जितपुण्येन त्वत्प्रियासीदिति निशम्य मनोरमां निवार्य भूपादिभिः क्षमितव्यं कृत्वा तत्रैव दीक्षितः। राजापि धर्मफले साश्चर्यचित्तः स्वतनुजं राजानं सुकान्तं श्रेष्टिनं च कृत्वा तत्रैव दीक्षितः तदन्तःपुरमपि । सर्वेऽपि तत्रैव पारणं चक्रुर्गुरुभिर्विहरन्तः स्थिताः।।
सुदर्शनः सकलागमधरो भूत्वा गुरोरनुज्ञया एकविहारी जातः । नानातीर्थस्थानानि वन्दमानः पाटलीपुत्रं प्राप्य तत्र चर्यार्थ पुरं प्रविष्टः । पण्डिता तं विलोक्य देवदत्तायाः कथयति स्म सोऽयं सुदर्शन इति । देवदत्ता स्वप्रतिज्ञां स्मृत्वा दास्या स्थापयांचकार उद्यत हुआ । राजाको जाते हुए देखकर लोकपालने उसे रोक दिया और वह स्वयं वहाँ चला गया। उसने उस भीलको युद्धमें मार डाला। वह मरकर वत्स देशमें किसी गोष्ठ (गायों के रहनेका स्थान ) के भीतर कुत्ता हुआ । एक दिन वह ग्वालिनीके साथ कौशाम्बी पुरमें गया और वहाँ ही एक जिनालयके आश्रित रह गया। वहाँपर वह समयानुसार मरणको प्राप्त होकर लोधी नामकी मनुष्यजातिमें सिंहप्रिय और सिंहिनी दम्पतिका पुत्र हुआ। उसके माता पिता बाल्यावस्थामें ही मर गये थे। तत्पश्चात् वह भी कुछ दिनोंमें मृत्युको प्राप्त होकर इसी चम्पापुरमें वृषभदास नामक सेठके सुभग नामका ग्वाला हुआ। उसने एक चारण मुनिके पाससे ‘णमो अरहंताणं' इस मंत्रको प्राप्त किया। वह सब ही कार्योंके प्रारम्भमें प्रथमतः उक्त मंत्रका उच्चारण करने लगा। आयुके अन्तमें वह गंगा नदीमें मरकर किये गये निदानके अनुसार तुम हुए हो । उधर वह कुरंगी ( भील स्त्री.) मर करके वाराणसी नगरीमें भैंस हुई थी। फिर वहाँ भी वह मरकर चम्पापुरमें साँवल और यशोमती नामक धोबीयुगलके वत्सिनी नामकी पुत्री हुई। सौभाग्यसे उसे आर्यिकाकी संगति प्राप्त हुई। इससे जो उसने महान् पुण्य उपार्जित किया उसके प्रभावसे वह मरकर तुम्हारी मनोरमा प्रिय पत्नी हुई है। इस प्रकार अपने पूर्व भवोंके वृत्तान्तको सुनकर सुदर्शन सेठने मनोरमाको समझाया और तदनन्तर वह राजा आदिकोंसे क्षमा कराकर वहींपर दीक्षित हो गया। सुदर्शनको प्राप्त हुए धर्मके फलको प्रत्यक्ष देख करके राजाके मनमें बहुत आश्चर्य हुआ । इसीलिए उसने भी अपने पुत्रको राजा तथा सुकान्तको सेठ बनाकर वहींपर दीक्षा ले ली । राजाके अन्तःपुरने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। तत्पश्चात् सबने वहींपर पारणा की। वे सब गुरुके साथ विहार करते हुए संयमका परिपालन कर रहे थे।
सुदर्शन समस्त आगमका ज्ञाता होकर गुरुकी आज्ञासे अकेला ही विहार करने लगा। वह अनेक तीर्थस्थानोंकी वंदना करता हुआ पाटलीपुत्र नगरमें पहुँचा। वहाँ वह आहारके लिए नगरमें प्रविष्ट हुआ। पण्डिताने उसे देखकर देवदत्तासे कहा कि यही वह सुदर्शन है। १. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श स्थानादि । २. श पाडलीपुत्रं । ३. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श 'पुरं' नास्ति ।
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