Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यास्रवकथाकोशम्
[२-८, १६: गृहद्वारे लकुटधरपुरुषरूपं धृत्वा तद्गृहे प्रविशन्तो राजपुरुषा निवारिताः। हठात्प्रविशन्तो लकुटेन मायया मारिताः । एवं वृत्तान्तमाकर्ण्य राज्ञा येऽन्ये बहवः प्रेषितास्तेऽपि तथा मारिताः । बहुबलेन कोपाद्राजा स्वयमागतः। तद्वलं समस्तं तथैव मारितम् । राजा नश्यंस्तेने भणितो यदि श्रेष्ठिनः शरणं प्रविशसि तदा रक्षामि, नान्यथेति । ततः श्रेष्ठिन् , रक्ष रक्षेति ब्रुवाणो राजा वसतिकायां श्रेष्ठिसमीपं गतः। श्रेष्ठिना चै कस्त्वं किमर्थमेतत् कृतमिति पृष्टः । ततः श्रेष्ठिनः प्रणम्य तेन कथितं सोऽहं दृढसूर्यो भवत्प्रसादात्सोधर्मे महद्धिको देवो जातः । तव प्रातिहार्यार्थमेतत् कृतम् । एवं मरणे अन्यचेतसापि तदुच्चारणे चोरोऽपि देवोऽभूदन्यो विशुद्धितस्तदुच्चारणे स्वर्गादिभाजनं किं न स्यादिति ॥८॥
[१७] किमद्भुतं यद्भवतीह मानवः पदैः समस्तैर्गुणसौख्यभाजनम् । विवेकशून्यः सुभगाख्यगोपकः सुदर्शनोऽभूत्प्रथमाद्धि सत्पदात् ॥६॥
अस्य कथा। तथाहि- अत्रैव भरते अङ्गदेशे चम्पापुरे राजा 'धात्रीवाहनो देवी आकर सेठके घरकी रक्षा करनेके लिए दण्डधारी पुरुष ( पहरेदार ) के वेषको धारण करके उसके घरके द्वारपर स्थित हो गया। उसने राजाके द्वारा भेजे गये उन राजपुरुषोंको सेठके घरके भीतर जानेसे रोक दिया। जब वे बलपूर्वक सेठके घरके भीतर जानेको उद्यत हुए तब उसने उन्हें मायासे दण्डके द्वारा आहत किया। इस वृत्तान्तको सुनकर राजाने जिन अन्य बहुत-से राजपुरुषोंको वहाँ भेजा उन्हें भी उसने उसी प्रकारसे मार डाला । तब क्रुद्ध होकर राजा स्वयं ही वहाँ बहुत-सी सेना लेकर आ पहुँचा। तब देवने उसकी उस समस्त सेनाको भी उसी प्रकारसे मार गिराया । जब राजा भागने लगा तब देवने उससे कहा कि यदि तुम सेठकी शरणमें जाते हो तो तुम्हें छोड़ सकता हूँ, अन्यथा नहीं। तब राजा जिनमन्दिरमें सेठके पास गया और बोला कि हे सेठ ! मेरी रक्षा कीजिए। तब सेठने उस वेषधारी देवसे पूछा कि तुम कौन हो और यह उपद्रव तुमने किस लिए किया है ? इसपर सेठको प्रणाम करके देवने कहा कि मैं वही दृढ़सूर्य चोर हूँ जिसे कि आपने मरते समय पंचनमस्कारमंत्र दिया था। मैं आपके प्रसादसे सौधर्म स्वर्गमें महा ऋद्धिका धारक देव हुआ हूँ। मैंने यह सब आपकी रक्षाके निमित्त किया है । इस प्रकार वह चोर भी जब अन्यमनस्क हो करके भी उस मन्त्रोच्चारणके प्रभावसे स्वर्गसुखका भोक्ता हुआ है तब अन्य जन विशुद्धिपूर्वक उसका उच्चारण करनेसे क्यों न स्वर्गादिके सुखको प्राप्त करेंगे ? अवश्य प्राप्त करेंगे ॥८॥
यदि मनुष्य यहाँ पंचनमस्कारमंत्र सम्बन्धी समस्त पदोंके उच्चारणसे गुण एवं सुखका भाजन होता है तो इसमें क्या आश्चर्य है ? देखो, जो शुभग नामका ग्वाला विवेकसे रहित था वह भी उक्त मंत्रके केवल एक प्रथम पद (णमो अरिहंताणं ) के ही उच्चारणसे सुदर्शन सेठ
हुआ है ॥९॥
उसकी कथा इस प्रकार है- इसी भरत क्षेत्रके भीतर अंग देशके अन्तर्गत एक चम्पापुर नगर है। वहाँ धात्रीवाहन नामका राजा राज्य करता था । रानीका नाम अभयमती था। इसी
१. फ नस्य॑स्तेन । २. ब-प्रतिपाठोऽयम् । प फ श श्रेष्ठि। ३. ब 'च' नास्ति ।
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