Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यात्रवकथाकोशम्
[ २-५, १३ : षड्वर्षेः षोडशकोटिद्रव्ये गते द्वादशसहस्रहिरण्यस्य स्वावासो ग्रहणं निक्षिप्तः । तस्मिन्नपि गते स्नुषाया आभरणानि निक्षिप्तानि गृहीत्वा प्रेषितानि । तानि वसन्तमालया पुनः प्रेषितानि । तदनु पुत्र्यै प्रतिपादितम् --- इमं गतद्रव्यं त्यक्त्वान्यत्र सधने रतिं कुरु । एवमेव ननु वेश्याशास्त्रम् । उक्तं च
धनमनुभवन्ति वेश्या न पुनः पुरुषं कदापि धनहीनम् ।।
धनहीनकामदेवेऽपि प्रीतिं बध्नन्ति नो वेश्याः ॥१॥ इति ।। तयोक्तमिह जन्मन्ययमेव भर्ता, अन्ये जातानुजाता” इति । मातुश्चित्तं परिशाय सा तं कदाचिदपि न त्यजति । कुट्टिन्यैकदा दत्तनिद्रावर्धनद्रव्यान्विताहारं भुक्त्वा सुप्तौ दम्पती। तत्र चारुदत्तो निरलंकारो निर्वस्त्रं कृत्वार्धरात्रौ कम्बलेन बन्धयित्वा पुरीषगर्तायां निक्षेपितः । तत्र गूथभक्षकसूकरस्पर्श सति वसन्ततिलके अपसरेति वदन् तलवरैः दृष्टः । कस्त्वमिति उत्थापितस्तैः परिज्ञाय निन्दितः। अनन्तरं स्वावासं गतः। दौवारिकैनिर्धाटितः सन् वदति किमिदं मम गृहं न भवति । तैरुक्तं ग्रहणं निक्षिप्तम् । तर्हि मम माता ल ली। तत्पश्चात् दूसरे छह वर्षोंमें उसके यहाँ चारुदत्तके घरसे सोलह करोड़ प्रमाण द्रव्य और भी पहुँच गया। तब बारह हजार सुवर्णमुद्राओंमें अपने निवासगृहको गहना रखना पड़ा । जब यह भी द्रव्य वसन्तमालाके घरमें पहुँच गया तब चारुदत्तकी माताने पुत्रवधूके रखे हुए आभरणोंको लेकर वसन्तमालाके यहाँ भेजा। उन्हें वसन्तमालाने फिरसे भेज दिया- वापिस कर दिया। तत्पश्चात् उसने पुत्रीसे कहा कि अब चारुदत्तका धन समाप्त हो चुका है, अतः इसको छोड़कर तू किसी दूसरे धनी पुरुषसे अनुराग कर । कारण कि वेश्याका सिद्धान्त इसी प्रकारका है । कहा भी है
__ वेश्यायें धनका अनुभव किया करती हैं, वे धनसे हीन पुरुषका उपभोग कभी भी नहीं करती हैं । धनसे रहित हुआ पुरुष साक्षात् कामदेवके समान भी क्यों न हो, परन्तु उसके विषयमें वेश्यायें अनुराग नहीं किया करती हैं ॥१॥ ___ माताके इन वाक्योंको सुनकर उसने कहा कि इस जन्ममें मेरा यही पति है, अन्य सब पुरुष मेरे लिये पुत्र व छोटे भाइयोंके समान हैं। अब वह माताके दुष्ट अभिप्रायको जानकर चारुदत्तको कभी भी नहीं छोड़ती थी। एक दिन वसन्तमाला वेश्याने उन दोनोंके लिये नींदको बढ़ानेवाली औषधसे संयुक्त भोजन दिया । उसे खाकर वे दोनों सो गए। तब वसन्तमालाने आधी रातमें चारुदत्तको वस्त्राभूषणोंसे रहित करके कम्बलमें लपेटा और पाखानेमें फिकवा दिया । वहाँ विष्ठाभक्षी शूकरका स्पर्श होनेपर चारुदत्त बोला कि हे वसन्ततिलके ! दूर हो, [ मुझे अभी नींद आ रही है । इस प्रकार बड़बड़ाते हुए देखकर कोतवालोंने 'तुम कौन हो' यह पूछते हुए उसे पाखानेसे बाहिर निकाला । पश्चात् उन लोगोंने उसकी इस परिस्थितिको जानकर बहुत निन्दा की । तब चारुदत्त अपने घरको गया। जब उसे द्वारपालोंने उस घरसे निकल जानेको कहा तब वह बोला कि क्या यह मेरा घर नहीं है ? उत्तरमें उन लोगोंने कहा कि यह घर गहने
१. फ षड्वर्षे । २. प श आभरणानि निक्षिप्तानि तानि ब आभरणानि गृहीत्वा प्रेषितानि तानि । ३.१ वसन्तमालाया फ वसन्तमालायाः। ४. फ सधनेन । ५. फ एवं ननु । ६. फ 'धनहीन' नास्ति । ७. फ कामदेवोऽपि । ८. प श बध्नाति नो वेश्या । ९. फ इत्यादि ब इति निशम्य । १०. फ जातानुजा । ११.फ
कट्रिन्येकदा दत्ता । १२.फ निर्वसुश्च कृत्वार्द्धरात्रे ब निर्वस्त्रश्च कृत्वार्द्धरात्री। १३. फ निक्षिपितः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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