Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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:२-५,१३]
२. पश्चनमस्कारमन्त्रफलम् ४-५
६५
प्रियङ्गश्रीः पुत्री विजयश्रीः पित्रानीय सुलोचनायाः कलादिषु प्रौढां कुर्विति समर्पिता । तत्र तिष्ठन्ती सुलोचनायोः कन्यामाटाग्देशस्थोद्यानं पुष्पाणि चेतुं जगाम । कालोरगेण प्रस्ता सुलोचनया दत्तपश्चपदप्रभावेन गङ्गाकूटनिवासिनी गङ्गादेवी जाता सुलोचनामपुजन इति ॥३॥
[१२-१३] अजो हि देवोऽजनि दिव्यविग्रहः सुराङ्गनापादितचारुभोगकः । स चारुदत्तार्पितपञ्चसत्पदस्ततो वयं पञ्चपदेष्वधिष्ठिताः ॥४॥ रसेन दग्धः पुरुषो हि कल्पकेऽभवत्सुकान्तारमणः सुनिर्मलः। स चारुदत्तोदितपञ्चसत्पद
स्ततो वयं पञ्चपदेष्वधिष्ठिताः ॥५॥ अनयोवृत्तयोः कथा चारुदत्तचरित्रे विद्यते इति तत्प्रतिपाद्यते । तथाहि- जम्बूद्वोपभरतेऽङ्गदेशे चम्पाया राजा विमलवाहनः, देवी विमलमती',श्रेष्ठीभानुर्भार्या देविला । सा राजा था। उसकी पत्नीका नाम प्रियंगुश्री था। उनके एक विजयश्री नामकी पुत्री थी। उसके पिता विन्ध्यकीर्तिने उसे लाकर कलाओंमें कुशल करनेके लिए सुलोचनाको सौंप दिया। तब विजयश्री वहाँ सुलोचनाके पास रहने लगी। एक दिन वह सुलोचनाके कन्यागृहके पूर्व भागमें स्थित उद्यानमें फूलोंको चुननेके लिए गई थी । वहाँ उसे काले सर्पने डस लिया था। तब उसे मरणासन्न देखकर सुलोचनाने पंचनमस्कारमन्त्र सुनाया। उसके प्रभावसे वह गंगाकूटके ऊपर रहनेवाली गंगादेवी हुई । उसने आकर सुलोचनाकी पूजा की ॥३॥
वह बकरा, जिसे कि मरते समय चारुदत्तने पंचनमस्कारमन्त्र दिया था, उक्त मन्त्रके प्रभावसे देव होकर दिव्य शरीरसे सहित होता हुआ देवांगनाओंसे प्राप्त सुन्दर भोगोंका भोक्ता हुआ । इसलिए हम उस पंचनमस्कारमन्त्रमें अधिष्ठित होते हैं ॥४॥
इसी प्रकार वह रससे दग्ध ( रसकूपमें पड़ा हुआ) पुरुष भी, जिसे कि चारुदत्तने पंचनमस्कारमन्त्र दिया था, उक्त मन्त्रके प्रभावसे स्वर्गमें सुन्दर देवांगनाओंका स्वामी निर्मल देव हुआ। इसीलिए हम उस पंचनमस्कारमन्त्रमें अधिष्ठित होते हैं ॥५॥
____इन दो वृत्तोंकी कथा चारुदत्तचरित्रमें है। उसको यहाँपर कहा जाता है- जम्बूद्वीप सम्बन्धी भरतक्षेत्रमें अंगदेशके भीतर चम्पा नगरी है । वहाँपर विमलवाहन नामका राजा राज्य करता था । रानीका नाम विमलमती था । वहाँ एक भानु नामका सेठ रहता था। उसकी पत्नी
१. प तिष्ठति। २. फ श सुलोचनया ब सुलोचनाया। ३. फ. कन्यामाटः । ४. फ गंगातट । ५. फ मपूजदिति प शमपूजन् ( 'इति' नास्ति)। ६.फ श्लोकोऽयं तत्र नास्ति । ७. ब कथे । ८. प वृत्तयोः कघे चारुदत्तचरिते एवोत्पद्यते । इति । तद्यथा तत्प्रतिपाद्यते श वृत्तयोः कथा ॥ चारुदत्तचरिते एवोत्पदाते ।। इति तद्यथा ॥ तत्प्रतिपाद्यते ।। ९. 'देवी विमलमती' इति ब-प्रतावस्ति, श-प्रती नास्ति।
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