Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१. पूजाफलम् ८
[७] नानाविभूतिकलितो व्रतवर्जितोऽपि चक्री सजिनपतिं परिपज्य भक्त्या। संजातवानवधिबोधयुतो धरित्र्यां
नित्यं ततो हि जिनपं विभुमर्चयामि ॥७॥ अस्य कथा- जम्बूद्वीपे पूर्वविदेहे पुष्कलावतोविषये पुण्डरीकिणीपुरे राजा यशोधरस्तीर्थकरकुमारः वैराग्यस्य किंचिन्निमित्तं प्राप्य वज्रदन्ततनुजाय राज्यं दत्त्वा स्वयं निःक्रमणकल्याणमवाप । वज्रदन्तमण्डलेश्वर एकदास्थानस्थो दुकूलध्वजहस्ताभ्यां पुरुषाभ्यां विज्ञप्तः, देव आयुधागारे चक्रमुत्पन्नमिति एकेन, इतरेण यशोधरभट्टारकस्य केवलमुत्पन्नमिति श्रुत्वा द्वाभ्यां तुष्टिं दत्त्वा सकलजनेन समवसृतिं जगाम। जिनशरीरदीप्तिं विलोक्याभ्यर्चितानन्तरं अधिकविशुद्धिपरिणामजनितपुण्येन तदैवावधियुक्तो बभूव षटखण्डं प्रसाध्य सुखेन राज्यं कृतवानित्यादिपुराणे प्रसिद्धेयं कथा ॥७॥
[८] संबद्धसप्तमधरानिजजीवितोऽपि श्रीश्रेणिकः स च विधाय समय॑ 'पुण्यम् । वीरं जिनं जगति तीर्थकरत्वमुच्चै
नित्यं ततो हि जिनपं विभुमर्चयामि ॥८॥ जो चक्रवर्ती अनेक प्रकारकी विभूतिसे सहित और व्रतोंसे रहित था वह भक्तिपूर्वक एक बार ही जिनेन्द्रकी पूजा करके पृथिवीपर अवधिज्ञानसे संयुक्त हुआ। इसलिए मैं निरन्तर जिनेन्द्र प्रभुकी पूजा करता हूँ ॥७॥
___ इसकी कथा- जम्बूद्वीपके भीतर पूर्वविदेहमें पुष्कलावती देश है। उसके अन्तर्गत पुण्डरीकिणी पुरीमें यशोधर नामक तीर्थंकरकुमार राजा थे। किसी वैराग्यके निमित्तको पाकर उन्हें संसार व भोगोंसे विरक्ति हो गई। तब उन्होंने वज्रदन्त नामक पुत्रको राज्य देकर स्वयं दीक्षा धारण कर ली। उस समय देवोंने उनके दीक्षाकल्याणकका महोत्सव किया। एक दिन राजा वज्रदन्त सभाभवन ( दरबार ) में विराजमान था। तब वहाँ अपने हाथोंमें वस्त्रयुक्त ध्वजाको लेकर दो पुरुष उपस्थित हुए । उनमेंसे एकने राजासे प्रार्थना की कि हे देव ! आयुधशालामें चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है । दूसरेने निवेदन किया कि यशोधर भट्टारकके केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। यह सुनकर राजा वज्रदन्त उन दोनोंको पारितोषिक देकर समस्त जनोंके साथ समवसरणमें गया। जब उसने जिन भगवान्के शरीरकी कान्तिको देखकर उनकी पूजा की तब परिणामोंमें अतिशय निर्मलता होनेसे उसके जो पुण्य उत्पन्न हुआ उससे उसी समय उसे अवधिज्ञानकी प्राप्ति हुई। तत्पश्चात् वह छह खण्डोंको जीतकर सुखपूर्वक राज्य करने लगा । यह कथा आदिपुराणमें प्रसिद्ध ही है ॥७॥
जिस श्रेणिक राजाने पूर्व में सातवें नरककी आयुका बन्ध कर लिया था उसने पीछे श्री वीर जिनेन्द्रकी पूजा करके लोकमें अतिशय पवित्र तीर्थंकर प्रकृतिको बाँध लिया है। इसलिए मैं निरन्तर जिनेन्द्र प्रभुकी पूजा करता हूँ ॥८॥
१. प स च विधा समर्थ्य, फ स स चिचाप समय॑ ।
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