Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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goraवकथाकोशम्
[ १-८ :
अस्य कथा - - अत्रैवार्यखण्डे मगधदेशे राजगृहे राजा उपश्रेणिकः । तस्मै एकदा प्रत्यन्तवासिपूर्ववैरिणा सोमशर्मराजेन मायया सखित्वं गतेन दुष्टाश्वः प्रेषितः । वाह्यालि तो राजा अजानन् तं चटितस्तेन महाटव्यां निक्षिप्तः । तत्र च पल्लीमवस्थितेन भ्रष्टराज्येन यमदण्डक्षत्रियेण स्वगृहं नीत उपश्रेणिकः । तस्य विद्युन्मतीदेव्याश्चोत्पन्नां तिलकावतीमद्राक्षीत् याचितवांश्च । तेनोक्तम्- यदि मम पुत्र्याः पुत्राय राज्यं ददासि तदा दीयते, नान्यथेति । ततस्तेनाभ्युपगम्य परिणीता, तया सह स्वपुरमागतः । तस्याश्चिलातीपुत्रनामा 'पुत्रोऽजनि । तमादिं कृत्वा तस्य पञ्चशतपुत्राः सन्ति । राज्ञोऽपरा देवी इन्द्राणी पुत्रः श्रेणिकोऽति
रूपवान् ।
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एकदा राज्ञा नैमित्तिकः पृष्टः एकान्ते, कस्य मत्पुत्रस्य राज्यं स्यादिति । तेन कथ्यतेकुमारेभ्यः प्रत्येकं शर्कराघटे दत्ते योऽन्येन धारयित्वा सिंहद्वारं नाययिष्यति, तथा नृतनं घट तृणविन्दुजलेन यः पूरयिष्यति, तथा सर्वकुमाराणामेकपङ क्तौ पायसभोजनेषु मुक्तेषु श्वसु यस्तान् निवार्य भोक्ष्यते, तथा नगरदाहे सिंहासनादिकं निःसारयिष्यति तस्य स्थान्नान्यस्येति ।
एकदा राजभवनान्तः शर्करा घटेषु दत्तेषु चिलातीपुत्रादिभिः स्वयं गृहीत्वा सिंहद्वार
इस
खण्ड में मगध देशके भीतर राजगृह नगर है । वहाँपर राजा उपश्रेणिक राज्य करता था । एक समय उसके लिए म्लेच्छ देशमें रहनेवाले पूर्वके शत्रु सोमशर्मा राजाने कपट मित्रताका भाव प्रकट करते हुए एक दुष्ट घोड़े को भेजा । बाह्य वीथी में गये हुए राजा उपश्रेणिकने इस बात को नहीं जाना और वह उसके ऊपर सवार हो गया । उक्त घोड़ेने उसे ले जाकर एक भीषण वनमें छोड़ दिया । वहाँ भील वस्ती में स्थित यमदण्ड क्षत्रिय, जिसे कि राज्यसे भ्रष्ट कर दिया गया था, उपश्रेणिक को अपने घरपर ले गया । वहाँ उसने यमदण्डकी पत्नी विद्युन्मतीसे उत्पन्न हुई तिलकावती पुत्रीको देखकर उसकी याचना की । यमदण्डने कहा कि यदि मेरी पुत्री के पुत्र के लिए तुम राज्य दो तो मैं उसे तुम्हारे लिए दे सकता हूँ, अन्यथा नहीं। तब उपश्रेणिकने इस बात को स्वीकार कर उसके साथ विवाह कर लिया और फिर उसको साथमें लेकर अपने नगर में वापिस आ गया । उसके चिलातीपुत्र नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । उसको आदि लेकर उपश्रेणिक पाँच सौ पुत्र थे । राजाकी दूसरी देवी इन्द्राणी थी । उसके अतिशय सुन्दर श्रेणिक नामका पुत्र था ।
एक समय राजाने एकान्तमें किसी ज्योतिषी से पूछा कि मेरे पुत्रोंमें राजा कौन-सा पुत्र होगा उत्तर में ज्योतिषी ने कहा कि प्रत्येक राजपुत्र के लिए शक्करका घड़ा देनेपर जो उसे दूसरेके ऊपर धराकर सिंहद्वारपर लिवा ले जायगा, जो मिट्टीके नये घड़ेको तृणबिन्दुओं के जलसे ( ओसबिन्दुओंसे ) पूरा भर देगा, जो सब कुमारोंकी एक पंक्ति में खीरको परोसकर कुत्तोंके छोड़ने पर उनके बीच में स्थित रहकर उन्हें रोकता हुआ उसे खावेगा, तथा जो नगर के प्रज्वलित होनेपर सिंहासन आदिको निकालेगा, वह पुत्र राजा होगा, अन्य नहीं ।
एक समय राजभवन के मध्यमें शक्करके घड़ोंके देनेपर चिलातीपुत्र आदिने उन्हें स्वयं ले जाकर सिंहद्वारपर स्थित अपने-अपने पुरुषोंके लिए समर्पित किया । परन्तु श्रेणिक किसी दूसरे के
१. प श तस्मादेकदा । २. फ बाह्योलिंगतो । ३. प ब तया स्वपु र फ तयाश्चपुरं । ४. क नाम । ५. फ राज्ञो देवी । ६. फ भोजने मुक्तेषु श्वषु ।
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