Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१४
पुण्यावकथाकोशम्
[ १-५ :
ऽजनि । पद्मिनी मदनमञ्जूषा जातेति स्नेहकारणं श्रुत्वा पुष्पाञ्जलिविधानं गृहीत्वा मुनीन् नत्वा स्वपुरमागतः । पुष्पाञ्जलविधानं कुर्वन् स्थितः ।
अथास्थानगतस्य भूपतेर्वनपालेन कमलं दत्तम् । तत्र मृतभ्रमरमालोक्य वैराग्याद्रत्नशेखराय राज्यं दत्त्वा राजसहस्रेण यशोधरमुनिसमीपे दीक्षां बभार । इतो रत्नशेखरायुधागारे चक्रमुत्पन्नम् । षट्खण्डवसुमतीं प्रसाध्य स्वपुरमागतः । पितुः कैवल्यवार्तामा कर्ण्य सपरिजनो वन्दितुं गतः । वन्दित्वागत्य मेघवाहनं खेचरेशं कृत्वा राज्यं कुर्वतो मदनमञ्जूषया कनकप्रभनामा' पुत्रो जातः । नवनवतिलक्ष- नवनवतिसहस्र-नवशत- नवनवतिपूर्वाणि राज्यं कृत्वा तत्रोल्कापातमवलोक्य वैराग्यं गतः । ततः कनकप्रभाय राज्यं दत्त्वा मेघवाहनादि - बहुभिः क्षत्रियैस्त्रिगुप्तमुनिनिकटे दीक्षितः केवलमुत्पाद्य मोक्षं गतो मेघवाहनोऽपि । मदनमञ्जूषादयस्तपसा यथोचित स्वर्गे पुण्यानुसारेण देवादयो जाता इति सकृजिनपूजया द्विजनन्दना एवंविधभूतिभाजनमभून्नित्यं जिनपूजया किं प्रष्टव्यम् ॥४॥
[ ५ ] वैश्यात्मजो विगतधर्ममनाः सुमूढो रागी सदा जगति भूषणरूढनामा ।
देव मेघवाहन उत्पन्न हुआ है, और पद्मिनी देवी मदनमंजूषा उत्पन्न हुई है । इस प्रकार स्नेहके कारणको सुनकर और पुष्पांजलिके विधानको ग्रहण करके मुनियोंको प्रणाम करता हुआ वह रत्नशेखर अपने नगरमें वापिस आ गया । तत्पश्चात् वह पुष्पांजलि के विधानको करता हुआ स्थित हो गया ।
किसी समय जब राजा दरबार में स्थित था तब उसे वनपालने आकर एक कमल-पुष्प दिया । उसमें मरे हुए भ्रमरको देखकर राजा विरक्त हो गया । उसने रत्नशेखरको राज्य देकर एक हजार राजाओं के साथ यशोधर मुनिके समीपमें दीक्षा धारण कर ली । इधर रत्नशेखर की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ । तत्पश्चात् वह छह खण्डरूप समस्त पृथिवीको जीतकर अपने नगर में वापिस आ गया। जब उसने पिता के केवलज्ञान उत्पन्न होनेकी बात सुनी तब वह कुटुम्बीजन एवं भृत्यवर्ग के साथ उनकी वन्दना करने के लिए गया । वन्दनाके पश्चात् वह वापिस आया और मेघवाहनको विद्याधरोंका राजा बनाकर राज्य करने लगा । कुछ समय के पश्चात् उसके मदनमंजूषा पत्नी से कनकप्रभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । निन्यानबे लाख निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे पूर्व तक राज्य करके वह रत्नशेखर चहाँ बिजली के पातको देखकर वैराग्यको प्राप्त हुआ । इससे वह कनकप्रभके लिए राज्य देकर मेघवाहन आदि बहुत-से राजाओं के साथ त्रिगुप्त मुनिके निकटमें दीक्षित हो गया और केवलज्ञानको उत्पन्न करके मोक्षको प्राप्त हुआ। मेघवाहन भी मोक्षको प्राप्त हुआ । मदनमंजूषा आदि तपके प्रभावसे अपने अपने पुण्यके अनुसार यथायोग्य स्वर्गमें देवादिक उत्पन्न हुए । इस प्रकार जब वह पुरोहितकी पुत्री एक बार जिन पूजाके प्रभावसे इस प्रकारकी विभूतिका भाजन हुई तब भला निरन्तर की जानेवाली जिनपूजा के प्रभावसे क्या पूछना है ? अर्थात् तब तो प्राणी उसके प्रभावसे यथेष्ट सुख प्राप्त करेगा ही || ४ ||
संसार में भूषण इस नामसे प्रसिद्ध जो वैश्यपुत्र धर्माचरण से रहित, अतिशय मूख और
१. फ मदनमंजूषा साकं कनकप्रभानामः ।
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