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एकुणसहिमो संधि कर सकता कि जस्तक हाथीकी खींसोंसे भिड़कर लड़ नहीं लेता।" एक योद्धाने अपने समस्त अलंकार तबतकके लिए उतार दिये कि जबतक वह रावणसे सीतादेवीका उद्धार नहीं फा धा" HE-१०
५] पीन पयोधरा और स्नेहमयी कोई एक गृहिणी, युद्धोन्मुख अपने प्रियको सीन दे रही थी,
"युद्ध में तुम रामके लिए अवश्य संघर्ष करना । असमय नगाड़ों, भेरी, दाढ़ और शंखोंकी धनि हो रही होगी। श्रेष्ठ वीरोंका समुद्र उछल रहा होगा । सिंहनाद और नरहुंकारसे भयंकर, उस युद्धमें मतवाले हाथियोंकी गर्जना हो रही होगी। राघवचन्द्र निश्चय ही, शत्रुसे भिड़ जाँचगे।" कोई नारी कह रही थी, "इस प्रकार लड़ना जिससे मैं लजाई न जाऊँ" | कोई स्त्री अपने प्रियको समझा रही थी, "तुम्हारे नष्ट हानेपर मैं जीवित नहीं रहूँगी। कोई स्त्री प्रतिचुम्बन दे रही थी और कोई वीर, उसकी उपेक्षा कर रहा था", वह कह रहा था, "हे प्रिये, मैं बलपूर्वक कीर्तिवधूको घूमूंगा।" कोई अपने प्रियको नमस्कार कर रही थी और कोई वीर सामन्त युद्धकी दीक्षा ले रहा था" | इसी बीच, कुम्भकर्ण कोधसे तमतमाता हुआ निकला, वह एक भारी विमानमें बैठा था, और निशुल अस्त्र उसके पास था। ऐसा लगता था मानो आकाश में धूमकेतु उग आया हो" ।।१-१०॥
[६] कुम्भकर्णके निकलते ही, मारी और माल्यवन्त भी निकल आये। भयानक और वन्न नेत्रवाले जाम्बवन्त और जम्यूमाली भी निकल आये। दुष्ट और क्षुद्रोंके समूहके लिए प्रलयंकर, धरणीधर कूबर और वधर भी निकल आये । अयमें दुर्जय दुर्द्धर और देखने में डरावने, दुभगमुख दुख और