Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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२०६
पउमरित
[९] संणिसुणेवि महाला कम्पिय । वा भरन्ति चक्खु दर जम्पिय ।।१।। 'माएँ " आणहुँ काई कोसइ । सीलु महारड किं मइलेसर' ।।२।। साव सुरिन्द-बिन्द कन्दावणु। कण्ठाहरण-विविह-क-दावणु ||३|| सीयहें पासु पहलिउ सरहसु । णावा कम्मइसरों पुणवतु ॥४॥ यावह दोह-समासु विहत्तिहें। णाषर छन्दु देव-गाइसि || शोधाविः कोइहि एनपी होलि ण झोलि साणण-केसरि ॥६।। सुबउ ण सुअन महारत हसु । दिछु ण दिटुबिउवण-साहस ।।७।। एवहिं कि करन्ति ते हरि-वक । जल-सुग्गांव-णील-माम ॥८॥
अग्ण वि जे जे मुह एवहि कहि णासन्ति
से ते महु सम्ब समावरिय । सारश व सीवहाँ कमें परिप ॥५॥
[१०] सीमन्तिणि मयरहरुत्तिण्णहाँ। लुहमि कीह कहनुप-सेन्जहाँ ।। रामु तुदार अम-पहें लायमि । इन्दा कुम्मणु मेलामि ॥२॥ जो विसाल किंठ कह पि विसल्लएँ। सो वि मिास्तु ण शुक्षा कक्षाएँ॥२॥ जीवियास तहुँ केरी पहि। बहु विमाणे अपाणउ मण्डहि ॥३॥ सरयण स-निहि पिहिमि परिपालहि। ना? मेरु जिणहरई गिहालहि ॥५॥ पेक्स समुा दीव सरि सरवर। गन्दण-पण महनुम मसिहर ।।

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