Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 338
________________ ३३० पउमचरिउ [ 11 ] बुद्ध कल्यलु दिष्ण रण-भेरि । चिन्धाएँ समुदयहूँ गय- घड पोइय राम- सेष्णु रण-रहसिउ कहि मि ण माइजु | ॥ जगु गिलेषिणं पर-बलु गिलहुँ प्रधाइ ||१|| PODGERS550) 115 11 पोवार रणबहु- फेडाविय मुद्दवडाहुँ ||३|| खर-पवणन्दोलिय-धयवढाहुँ ||४|| रोसाविय भासी बिसह राहुँ ॥५॥ संजकिय दिसामुह- दुग्धणाहुँ || ६ || जूराविय सुरकामिणि-जना हुँ |७|| विहि-कोट्टि हयरा ॥८॥ उच्छळिय- ववल मुत्ता हा हुँ || ९ || घत्ता ॥७॥ nitaag zug Vitara मा औरसिय-सङ्घ-सय-संघडा हुँ । उदङ्गुस घाड्य-गय- घढाहुँ । कम्पाधिय-सयल - वसुन्धरा हुँ । मेलाविययण हुवासणाहुँ । जयलच्छि बहुअ-गेण्हणन्मणाहुँ । उग्गा मिय मा मिय असिवरा हुँ । निलय कुम्भि कुम्भाला हुँ । - भड-धड-गय-चडहिं भिडन्तर्हि स्व-नियरु समुट्टि सिकिह खड् काय किय हेइ-सङ्गद्द | सुक्क तुरयवाहिय महारह || गय-पय-मर- मारिएँ अब विमुच्छावियों रह-तुरयति तुरि भिडन्त हि । शिय-कुलुमन्तु दु-पुतु जिह ||१५|| [ १२ } हरि-खुराह र समुच्छ लिउ । धर जाएँ पीसासु मेडिय अन्धयारु जीउ व मेलिङ ॥ अह णरिन्द-कीवाणलेण बज्झन्ति । वहल-धूम-बिच्छयूँ धूमायति ॥ १ ॥ -विसा ॥२॥ अहवइ दोहर-रणिन्दणालेँ । जय-कमले दिसामुह-दरण मे इणि ऋणिय मोहमार्गे । 1हरि-मर खुर विडिजमार्णे ॥ ३ ॥ 1 1 I

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