Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पउमचरिउ
[ 11 ] बुद्ध कल्यलु दिष्ण रण-भेरि ।
चिन्धाएँ समुदयहूँ गय- घड पोइय
राम- सेष्णु रण-रहसिउ कहि मि ण माइजु |
॥
जगु गिलेषिणं पर-बलु गिलहुँ प्रधाइ ||१|| PODGERS550) 115 11 पोवार रणबहु- फेडाविय मुद्दवडाहुँ ||३|| खर-पवणन्दोलिय-धयवढाहुँ ||४|| रोसाविय भासी बिसह राहुँ ॥५॥ संजकिय दिसामुह- दुग्धणाहुँ || ६ || जूराविय सुरकामिणि-जना हुँ |७|| विहि-कोट्टि हयरा ॥८॥ उच्छळिय- ववल मुत्ता हा हुँ || ९ || घत्ता
॥७॥
nitaag zug Vitara मा औरसिय-सङ्घ-सय-संघडा हुँ । उदङ्गुस घाड्य-गय- घढाहुँ । कम्पाधिय-सयल - वसुन्धरा हुँ । मेलाविययण हुवासणाहुँ । जयलच्छि बहुअ-गेण्हणन्मणाहुँ । उग्गा मिय मा मिय असिवरा हुँ । निलय कुम्भि कुम्भाला हुँ ।
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भड-धड-गय-चडहिं भिडन्तर्हि स्व-नियरु समुट्टि सिकिह
खड् काय किय हेइ-सङ्गद्द |
सुक्क तुरयवाहिय महारह ||
गय-पय-मर- मारिएँ अब विमुच्छावियों
रह-तुरयति तुरि भिडन्त हि । शिय-कुलुमन्तु दु-पुतु जिह ||१५||
[ १२ }
हरि-खुराह र समुच्छ लिउ ।
धर जाएँ पीसासु मेडिय अन्धयारु जीउ व मेलिङ ॥
अह णरिन्द-कीवाणलेण बज्झन्ति । वहल-धूम-बिच्छयूँ धूमायति ॥ १ ॥
-विसा ॥२॥
अहवइ दोहर-रणिन्दणालेँ । जय-कमले दिसामुह-दरण मे इणि ऋणिय मोहमार्गे । 1हरि-मर खुर विडिजमार्णे ॥ ३ ॥
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