Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पउमचरिउ
रण-पिति (१) रहवर -लाडि करेवि । गय-पाला पिहु पाढन्सि के षि ॥ ८॥ कत्थ इसिन सुबह हियउ केवि । गय वेस व चा सर्व्हे करे वि ॥९॥
यता
कर इ म गय-च-पेलिय मावि आय। सहाँ मे लिय । पलट्ट पडीवड असि घरंचि णं सामिहें अवसरु सम्मवि ॥१०॥
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तहि महाहवें अमित हनुस् ।
सुग्गीव अश्यक विदण्ड नीलो विरुद्ध । जमघण्टु सार-सुआह मय-परिन्दु जम्मवहीँ कुछ ॥
सीहणाय सीहोर गवय-गवखहुँ । विज्युदाह-विज्जुपहस सुसहुँ ॥१॥
तारागणु तारह ओडिउ । जालक्खु सुसे हों उत्थरि ।
भट्ट लिहाँ । सन्मागलगजिङ दहिमुद । घणघसु पसम्नकिति विहों । पवि कुन्दद्दों कुमुह सोहरदु । धूमाणणु कुधु अणुद्धर । विडोय महुस ओडिड ।
एव णरात्रि उत्थरिय दणु-दारण-पहरण-संजु हिं
कलोल तरकड़ों अग्नि डिउ || ११ | चन्द्र चन्दोरु धरि ॥॥॥ पात्रखसवणु भामण्डलों ॥४॥ हयगीड महिन्दहों अहाँ ||५||
खुचिहीसण-पविहाँ ॥ ६ ॥ सहाँ हुम्मुटु दुब्बिसहु ॥ ॥ जाकन्धर-राउ वसुन्धरहीं ॥८॥ तडिकेसि स्य कैसिहँ सिडि ||९||
घत्ता
स रहस सामरिस ऐस-मस्यि । पहरन्त परोप्पस भुऍ हि ॥ १०॥

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