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________________ १४० पउमचरिउ रण-पिति (१) रहवर -लाडि करेवि । गय-पाला पिहु पाढन्सि के षि ॥ ८॥ कत्थ इसिन सुबह हियउ केवि । गय वेस व चा सर्व्हे करे वि ॥९॥ यता कर इ म गय-च-पेलिय मावि आय। सहाँ मे लिय । पलट्ट पडीवड असि घरंचि णं सामिहें अवसरु सम्मवि ॥१०॥ [96] तहि महाहवें अमित हनुस् । सुग्गीव अश्यक विदण्ड नीलो विरुद्ध । जमघण्टु सार-सुआह मय-परिन्दु जम्मवहीँ कुछ ॥ सीहणाय सीहोर गवय-गवखहुँ । विज्युदाह-विज्जुपहस सुसहुँ ॥१॥ तारागणु तारह ओडिउ । जालक्खु सुसे हों उत्थरि । भट्ट लिहाँ । सन्मागलगजिङ दहिमुद । घणघसु पसम्नकिति विहों । पवि कुन्दद्दों कुमुह सोहरदु । धूमाणणु कुधु अणुद्धर । विडोय महुस ओडिड । एव णरात्रि उत्थरिय दणु-दारण-पहरण-संजु हिं कलोल तरकड़ों अग्नि डिउ || ११ | चन्द्र चन्दोरु धरि ॥॥॥ पात्रखसवणु भामण्डलों ॥४॥ हयगीड महिन्दहों अहाँ ||५|| खुचिहीसण-पविहाँ ॥ ६ ॥ सहाँ हुम्मुटु दुब्बिसहु ॥ ॥ जाकन्धर-राउ वसुन्धरहीं ॥८॥ तडिकेसि स्य कैसिहँ सिडि ||९|| घत्ता स रहस सामरिस ऐस-मस्यि । पहरन्त परोप्पस भुऍ हि ॥ १०॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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