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________________ चउसत्तरिमो संधि मैं तीनौका कर्ज चुकता कर देता, अपने स्वामी, शरणागत और सबनका । कोई अपने स्वामीके आगे अपने हाथ की सफाई दिखा रहा था। उसने सिर-कमलोंके पत्रपुट ( दोने) बना दिये । किसी ने युद्ध की अग्रभूमिमें अत्यन्त असहाय होकर जूझते हुए सोचा, “मैं शीघ्र ही अपने दोनों हाथों और हृदयको अविलम्ब गजघटाकी पीठपर बैठाना चाहता हूँ। किसीकी बाहुलता तलवारके साथ ही कट गयी, वह ऐसी लगवी 'भो सानो सांप सहित जहा वृक्षनी सा हो। कोई अपनी आँतों में कैंसता हुआ मारा गया, उसका स्वामी उसे उठा कर शिविरमें ले गया। कहीं पर क्रोधसे चमतमाती गजघटा सुभट के सम्मुन दौड़ पड़ी, वह उसके पास अपना सिर धुनती हुई उसी प्रकार पहुँची जिस प्रकार प्रथम सम्भोग के लिए नववधू अपने पसिके सम्मुख पहुँचती है॥१-८॥ [१७] कोई दाँतरूपी मुसलोंके सहारे, सिंहके समान मदको धार बहाते हुए गजपर चढ़ गया । तलवारसे उसका कुम्मस्थल फाड़ डाला, उसके सब मोती निकाल लिये। उन्हें चूर-चूर कर सफेदी फैला रहा था। कोई मतवाले हाथीका दाँत उखाड़ कर उससे अन्य गजसमूह पर आघात करता। कोई एक सुभट रणवधूके साथ सो रहा था। उठी हुई सूड़ोंके विशाल मण्डपमें भिड़ते हुए हाथियोंके अन्तरालमें, गजकर्णो के चमर उसे बुलाये जा रहे थे। कितने हो वीर योद्धा हाथियोंके मदजालको नही और रक्तकी नदीके प्रवाहोंके अथाह संगममें अपनी तलवार निकाल कर और फरसेको नाव अनाकर लड़नेके मनसे उसमें तैर रहे थे। कितने ही योद्धा हस्तिह्ढोंकी रस्सियोंसे दोनों ओर बँधे हुए हाथियोंके सिरोंके चंचल पादपीठपर खड़े होकर दोनों सेनाओको देखकर फिर आन्दोलन छेड़ देते थे। कितने ही
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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