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________________ घड़ससरिमी संधि 301 रणके पदपर रथवरोंको गोटी बनाकर गजरूपी पाँसोको गिरा रहे थे। कहीं पर सियारिन सुभटका कलेजा लेकर इस प्रकार जा रही थी, मानो वेड्या ही सैकड़ों प्लाटुन एँ करायी हो। कहींपर कोई योद्धा गजघटाके दबाव से घूमकर आकाशमें पड़ता, फिर तलवार लेकर वापस आता, मानो उसे स्वामीके अवसरकी याद आ जाती // 1-10 // [18] उस महायुद्धमें हनुमानसे अमित, सुप्रीवसे महाकाय और नीलसे वनदण्ड विरुद्ध हो उठा। तारासुतसे यमघंट, और मृग राजा जाम्बवान से क्रुद्ध हो उठा। सिंहनाद सिंहोदर गयय गवाक्षसे विद्युद्दाद विधुत्पभसेशंख सुशंखसे एवं तारामुख तारसे भिड़ गया। कल्लोल तरंगसे भिड़ गया, जालाक्ष सुसेनपर टूट पड़ा, चन्द्रमुखने चन्द्रोदर को पकड़ लिया, कृतान्तवक नलसे लड़ा और नक्षत्रदमन भामण्डलसे / संध्यागलगर्जित दधिमुखसे, हतग्रीव महेन्द्रसे, घनघोष प्रसन्नकीर्ति राजासे, वज्ञान विभीषण राजासे, पवि कुंदसे, सिंहरथ कुमुदसे, दुर्मुख दुर्विष शार्दूलसे, क्रुद्ध धम्रानन अनुरुद्धसे, जालंधर नरेश वसुन्धरसे और विकटोदर नहुषसे लड़ा / तडिकेशी रत्नकेशीसे भिड़ा। युद्ध में इस प्रकार राजाओं की भिड़न्त हो गयो। सबके सब हर्ष, उत्साह और रोषसे भरे हुए थे। दानवोंका संहार करनेवाले हथियारोंसे युक्त वे स्वयं अपनी मुजाओंसे एक-दूसरेपर प्रहार कर रहे थे / / 1-10||
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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