Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 345
________________ सतरिम संधि [१५] धूल के नष्ट होने पर उन दोनों ( राम-रावण ) में तुमुल युद्ध हुआ । करणबंध और तीरोंके प्रहारमें निपुण, राम और रावणकी सेनाओंमें ऐसा घोर संग्राम हुआ, मानो अत्यन्त अनुरक्त प्रेमीयुगलकी अन्धकार विहीन सुरत कीड़ा हुई हो । रथोंसे रथ, मनुष्योंसे मनुष्य, अश्वोंसे अश्व, और मतवाले हाथियोंसे मतवाले हाथी जा भिड़े। कोई सुभट सुभट से भिड़कर भी स्वर्ग जाना पसन्द नहीं करता, वह देवताओंसे युद्धकी इच्छा रखता है। कोई योद्धा अपने हाथों में तीरोंको लिये हुए दौड़ रहा है मानो वह रणलक्ष्मीका आलिंगन करना चाहता है | किसीका बाहुदण्ड तीरके अग्रभागमें हैं जो ऐसा लगता है मानो गरुड़की चपेट में साँप आ गया हो, किसीको निरन्तर तीर चुभ रहे थे, वह पीठ नहीं दे रहा था. और न किसीसे नष्ट हो रहा था। चाहे निर्गुण हों और चाहे धर्मसे च्युत, परन्तु सच्चे भाई वे ही है जो अवसर पर काम आते है । युद्धभूमिमें कहीं-कहीं धड़ नाच रहा था, मानो सुभट अपने सिरसे स्वामीका ऋण दे चुका था। किसी सुभटका सिर आकाश में उछला और फिर वापस धरती पर आ गिरा। धवल आतपत्र में एक सिर ऐसा लगता था, मानो राहुबिम्बने चन्द्रबिम्बमें प्रवेश किया हो। किसी एक सुभटने स्वामीके ऋणमें अपना सिर दे दिया, तीरोंके लिए अपना वक्षःस्थल और हृदय जिन भगवान के लिए ॥१-१०॥ [१६] एक योद्धा गजघटाकी उत्तम विलासिनीके कुम्भस्थल रूपी पयोधरोंसे जा लगा, कोई गजोंके दन्ताममें अटका था, कोई सूँडसे ऊपर जा गिरा और कोई उसके नाभिप्रदेशसे जा लगा। कोई एक अपना मुख नीचे किये सोच रहा था कि हतभाग्य विधाताने मुझे तीन सिर क्यों नहीं दिये। उनसे

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