Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पढमचरिज
मिन्दु मयर नाइँ |
चड व समर-पद-वासचुण्णु : वाह व रणु त्रिविण वि बलाएँ । तनहूँ।
माइ व मण महा-गया है । बीसम व उत्त धहि चषि ।
रम-णि वहीं धरिति जाइ ॥४॥ णास व सोज्जे रहु तुरय छष्णु ॥ ५ ॥ साइज दे व बच्छाएँ ॥ ६ ॥ भाड न जाणारें परा॥७॥ णच्च व कण्ण-ताले हिंसा (!) | तत्र वगण विद्वेषि ॥ ९ ॥
घत्ता
लक्विड कवि
परन्तु महन्तु रज कष्युरज | महि-मड गिळतहों स-रहसों णं केप-भारु रण - स्वस नहीं ॥१०॥
[12]
सो पण सन्दणु सोण मायङ्गु I
तुरमुणविय घट पर णिम्म आय
जाज सुट्ट समरऋणु दूसंचार । तहि मि के चि पहरम्लिस साहुकार ॥१॥ केहि मि करि-कुम्मइँ परमदुहूँ । केहि मि लक्ष्यइँ नर-सिर-पवरहँ । केहि मि हिमहूँ वला वि-छत्तएँ । केहि भि चक्खु पेसरु अलहन्ते हि केण स खग्ग-ट्टि परिव्यय । केण वि करि-कुम्मस्थलु काहि ।
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गायवस्तु जं मज करुङ्किङ । महुँ चितुमणि सक्रिय ॥
णं सङ्ग्राम- सिरिहें यहाँ २ || णं जयहच्द्धि-वरण- मरएँ ॥३॥ णं जयसिरि-कोला -सयवसहूँ ॥४॥ पहरिउ वालालुसि कातें हिं ॥५॥ रण- रक्वस हो जीणं कविय ॥ ६ ॥ णं रण-ममण चारू उघारि ॥७॥
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