Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 337
________________ १२९ पडसत्तरिम संघि रावणके हाथोंका समूह है"। यह सब सुनकर लक्ष्मणने उसी समय अपनी आँखें तरेर ली। उसने रावणको ईष्यांसे ऐसा देखा मानो राशिगव शनिश्चरने ही देखा हो ॥ १-१०॥ [१०] लक्ष्मणने अपना सागरावर्त धनुष हाथ में ले लिया। वह गरुड़ रथपर बैठ गया। उसके पास गारुख अस्त्र था और गरुड ही उसके ध्वजपर अंकित था। रामने वावर्त धनुष ले लिया। उनका सिंह रथ था और सिंह ही उनके ध्वजपर अंकित था। किष्किन्धा नरेशके हाथ में गदा थी, उसके पास गजरथ था। उसके ध्वजपर बन्दर अंकित थे। तमतमाता हुआ वह भी तैयार हो गया। पौंग-३ क्षौहिणी सेपाके साथ सुग्रीषको तैयार होता हुआ देखकर भामण्डल भी एक हजार अझौहिणी सेनाके साथ, सन्नद्ध होकर लक्ष्मणके पास आ पहुँचा । सौ अौहिणी सेनाओंके साथ अंग और अंगद एवं उनसे आधी सेनाके साथ नल और नील वहाँ आये । शत्रुके लिए लाख अक्षौहिणी सेनाके बराबर हनुमान चालीस अक्षौहिणी सेनाके साथ आया। तीस अक्षौहिणी सेनाके साथ अधिक अभिमानी विभीषण हाथमें त्रिशूल लेकर रथमें चढ़ गया। दधिमुख और महेन्द्र तीस-तीस अक्षौहिणी सेनाओं, और बीस-बीस अझोहिणी सेनाओंके साथ सुसेन एवं कुन्द, कुमुद सोलह अनौहिणी सेनाके साथ और शंख चौदह अक्षौहिणी सेनाके साथ, गवय बारह अक्षौहिणी सेनाके साथ और गवान आठ अक्षौहिणी सेनाके साथ, चन्द्रोदरसुत सात अभौहिणी सेनाके साथ, और बलिका पुत्र तेहत्तर अक्षौहिणी सेनाओंके साथ वहाँ आये । सन्नद्ध होकर सब लोग रामके पास पहुंचे। उनके पास कुल बीस सी अक्षौहिणी सेनाओंका बल था। वे व्यूह बनाकर चल दिये, मानी समुद्र के

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349