Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पउमचरित
मीसणु मिडिमाल बारहम। मकु असा था सेरहम ॥५॥ पर महन्तु कोन्तु चउदहमएँ। सत्ति मयकर पगारहम ॥६॥ सोलहम तिमूलु अई भोसणु । समारहमएँ कण दुरिसणु ॥७॥ भट्ठारहम मोगर दारुणु एगुणवीसमें घशु घुसिणार ॥८॥ बीसमए मुसलिम्गामिर। काले काल-दण्टु णं मामिउ ॥९॥
घसा वीसहि मि भुभ (दण्ड) हिंघीसा हि दसहि मि मिडि-माल-मुहाई। भीसावणु सवशु बाज किड सर्दै गहि कयन्तुविस जिइ ॥१०॥
[ ] दसहि कप डि दस में कहा है। दस-मालहि तिरुम दस दस-सिरहि दस मा पलिय। दहि मि कुपडक-युएँ हि इण्ण-जुअल सुकाक (1) मुह लिय ।।
फुरित स्यप-सवाब दसाणण-शेसुध ।
मह थिभी स-सारायणु पहल-पोसुक । परम-चपणु खय-सूर-सम-प्पड । सिन्दुरारुणु सुरह मि साहु ।।२।। बीयउ वय धवल पबलराउ । पुरिणाम-मन्द-विम्ब सारिंग्छउ ॥३॥ सम्यक्ष वयषु भुवण-मयगारड। अगारारुणु मुकार ॥४॥ घयणु उस्थत बुह-मुह-मासुक। पवमरण सा में णं सुर-गुरु ॥५॥ छट्टड सुक्कु सुम्प-सङ्कासह। दाणव-वक्खिर सुर-सन्यास सत्तम कल सणिकर-मोसणु दनुस पिया दाह पुररिसणु ॥७॥

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