Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
३२६
परमञ्चरित अट्टमु राहु-वयणु विकरालऊ। गधमउ धूमकेत धमालउ ॥ दसमउ दयणु दसाणण-फेरठ। सव-जणहो मय-दुक्ल-जोरत ॥५॥
।
घत्ता
बहु-रूबर बहु-मिरु बहु-क्यणु वहुविड-वोलु बहुषिहणयणु । बहु-कण्ठ -करु चि बहु-पर पं गड-पुस्सुि रस-भाव-गज ॥१०॥
।
[९] तो णिएपिणु णिसियरिन्दस्स । सीसई णयणई मुहई पहरणाई यणियर-मीसा । आहरण इच्छ-यल राहवेण पुचित विहोसणु ।
'किं तिकूट सेलोवरि दीसह णव-षणु' ।
'देव देव पं णं ऍहु घिउ राषण' ॥५॥ "f गिरि-सिहर जहें दीसिगई'। 'णं आयर दससिर-सिराहँ' ॥२॥ 'किं पालय-दिवायर भण्डलाई। ' आयई मणि-कुण्डलाई' ॥३॥ 'कि कुवलपा माणस-सरहों। नणं णयण. लकैसरहों ।।५।। "कि गिरि-कन्दरई भयाणणाई। 'fi दहवांगें इमाणणाई ॥५॥ 'किं सुर-पाषर साधुत्तमाई', 'fण कण्ठाहरण इमाई' ॥६॥ "कि तारा-यण, तणुज्जलाई। 'णं गं धवलई मुखाहलाई ॥७॥ 'किं कसणु विहीलण गयण यलु' । 'नं णं साहिव-पहचवलु' १८॥ 'कि दिस-वेसण-सोप-पयरो' । 'णं णं दाहकम्धर-कर-णियरो' ॥५॥

Page Navigation
1 ... 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349