Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 324
________________ १ पउमचरित [२] तार मा इणिमिमा उहाविड उत्तरित भायबसु मोहिउ दु-बाएँग ।। हाहा-रउ उद्वियन छिपण कुहिणि घण-कपण-णाएँग ॥ णिधि ताई दु-णिमित पय-सिर-पतिहिं । 'जाहि माय' मन्दोयरि धुश्चह मन्तिहिं ।। ३ ।। 'मा णासड सुन्दरु पुरिस-मय। जह कह वितुहारउ करह षय |२|| तो परिश्रछावहि बुद्धि देवि'। भाका हि तेहिं पयह देवि 1३॥ विहाफर पासु दसाणणासु। हरि-मण करेणु व धारणा ॥७॥ णं सइ-महएवि पुरन्दरासु । र्ण रह सरसुव्य-धणुद्धरासु ॥५॥ पणषेपिणु कप्पिशु पणय कोउ । दरिसन्सि अंसु-जलु थोवु थोषु ।।३।। पमणइ 'परमेसर काइँ मूहु । मोहन्ध-फूचे कि देव छु।७।। घन्ता कु सरीरहों कारणे जाणइहें मा णिवाहि गरय-महागइहें । लाइ हि किमिच्छदि पुहवाइ कि होमि सुरक्षण सम्छि रइ' 16|| तं सुणेप्पिणु मणइ दहवाणु । 'किं स्म तिलोत्तमाहि उम्पसी अच्छर' कच्छिएँ । किं सोय' किं रह पई वि काइँ कुवलय-दलम्सिएँ । आहि कसे हउँ लग्गा बन्धु-पराहवे । थरहरम्ति सर-धोरणि लायमि राहवे ||१|| लक्षणे पुणु मि सति संचारमि । मङ्गल्य जमउरि पइसारमि ॥२॥ पारमि वाणर-बंस-पईयहाँ। मथएँ दज्ज-दण्ड सुग्गीवहाँ ।।३।।

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