Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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३.२०
पर पक्खें पसंसियऍ जाला सब पज्जलिङ
[ ५ ]
पिय पक्खहाँ दिल्ण अहिखेवें । दस सिरहिंद अहो वाण छित] ॥
पलिप्तड ।
पउमचरिउ
(वि) फुरियाहरू मतिय-करुप्पलु | यि गण्ड भू - भङ्गुरुताडिय महिय || १||
'अड् अण्णें क्रेण वित्तु एव ।
सिरुपामि ताल- हलु जेम ॥२॥
तुएँ पणणि पण
चुक्क । ओसरु पासों मा पुरउ ढुक्क ॥ ३॥ किष्ण कर मिसम्धि वहिं जें कालें। खर-दूषण-रणे हय- कोहवायें ॥४॥ रामागमें एकोरपवासें ॥५॥ इन्दद्द-घणवाहण-वन्दि धरणें ॥६॥ एकतरुता मि महु मि अज्जु || ७||
- मन्दिर - विणा
।
मनिहत्य - पत्थ- मरणें ।
एवहि पु दूसम्धवट कक्षु |
एहिं तु यहिं विभव- तुम जिम लक्षणं-राम मग्गहि
दूर अप्फा लिइँ
सज्जिय रह जुन्त हय
घन्टा
विहिं गद्दहिं समप्यमि प्रणय-सुत्र | जिम मह पाहि भि विमाऐं हि ' ॥ ८ ॥
1
[4]
एम भणेवि पहय रण-भेरि ।
दिग्ण स उमिय महय । सारिसकिय दम्ति दुञ्जय ||
मिटिड सेण्णु किउ कळयलु रण- परिभ्रोसँग । णिरवसेसु जगु बहिरिद्ध
तुर - निघोसँग || १॥

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