Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 328
________________ ३.२० पर पक्खें पसंसियऍ जाला सब पज्जलिङ [ ५ ] पिय पक्खहाँ दिल्ण अहिखेवें । दस सिरहिंद अहो वाण छित] ॥ पलिप्तड । पउमचरिउ (वि) फुरियाहरू मतिय-करुप्पलु | यि गण्ड भू - भङ्गुरुताडिय महिय || १|| 'अड् अण्णें क्रेण वित्तु एव । सिरुपामि ताल- हलु जेम ॥२॥ तुएँ पणणि पण चुक्क । ओसरु पासों मा पुरउ ढुक्क ॥ ३॥ किष्ण कर मिसम्धि वहिं जें कालें। खर-दूषण-रणे हय- कोहवायें ॥४॥ रामागमें एकोरपवासें ॥५॥ इन्दद्द-घणवाहण-वन्दि धरणें ॥६॥ एकतरुता मि महु मि अज्जु || ७|| - मन्दिर - विणा । मनिहत्य - पत्थ- मरणें । एवहि पु दूसम्धवट कक्षु | एहिं तु यहिं विभव- तुम जिम लक्षणं-राम मग्गहि दूर अप्फा लिइँ सज्जिय रह जुन्त हय घन्टा विहिं गद्दहिं समप्यमि प्रणय-सुत्र | जिम मह पाहि भि विमाऐं हि ' ॥ ८ ॥ 1 [4] एम भणेवि पहय रण-भेरि । दिग्ण स उमिय महय । सारिसकिय दम्ति दुञ्जय || मिटिड सेण्णु किउ कळयलु रण- परिभ्रोसँग । णिरवसेसु जगु बहिरिद्ध तुर - निघोसँग || १॥

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