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चउसत्तरिमी संधि
१९ भामण्डलपर वारुण, विभीषणपर धकधकाता हुआ आग्नेय अस्त्र, माहेन्द्र और महिन्द्रपर नागपाश, कुमुद, कुन्द और इन्द्रपर वैस्रावण अस्त्र चलाऊँगा। गवय और गवानके चिह्नोंको मोड़ दूंगा | नल और नीलके भुंडोंको नचाऊँगा। तार और सुसेनकी मनिह होंके लिए दे दंग पर सरकार बाहे यमदूतोंके पास पहुँचा दूंगा। जिसकी आजा इन्द्र तक मानता है, पहाड़ों सहित धरती हाथ जोड़कर जिसकी दासी है, ऐसा रावण यदि रूठ गया तो राम और लक्ष्मणको पकड़ना उसके लिए कौन-सी बड़ी बात है ! ।। १-२॥
[४] रावणके इन शब्दोंको सुनते ही मन्दोदरी गुस्सेसे भर उठी। उसने कहा, "देवताओंने तुम्हारा दिमाग आसमानपर चढ़ा दिया है, इसीलिए तुम्हारा इतना पराक्रम है । परन्तु क्या, खरदूषण और त्रिशिरके वधसे तुम्हें लक्ष्मणका पराक्रम ज्ञात नहीं हो सका ? उस लक्ष्मणने एक पलमें बलपूर्वक पाताललंका नष्ट कर दी, सुग्रीवको तारा दिलवा दी और शिला उठा ली। और हनुमानकी करनी तो बहुच दुःख देनेवाली हैं। क्या तुमने उन्हें नहीं देखा जो शल्य की भाँति हृदयमें चुभी हुई हैं। उनके बड़े-बड़े योद्धा आज भी हैं. जो दुर्जनोंके मुखकी तरह दुःखदायक हैं। नल-नीलको युद्धमें कौन सहन कर सकता है उन्होंने हस्त और प्रहस्तको भी मार डाला। उन रामका भी मुख कौन देख सका, जिन्होंने तुम्हें छह बार रथहीन कर दिया । अंग और अंगदको पकड़नेकी तो बात ही छोड़ दीजिए उन्होंने तो मेरे केशों तकमें हाथ लगा दिया। मायासुप्रीवका मर्दन करने वाले रघुनन्दनमें इतनी क्षमता है, इसलिए नघमालतीमालाकी भाँति भुजाओंवाली सीतादेवीको आज ही वापस कर सकते हो ।। १-८॥