Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 312
________________ ३०४ पउमचरिट पलम्व-घण्ट-जोसो। पसपण-कण्ण-वामरो। मणोज-गेज कण्ठो । विसाल उन्मू-चिन्धो गिरि व तुङ्ग-गत्तओ। घणो म्ह पूजासगो। मणो व लोल-वेयओ। वहन्त-दाण-सोती । णिमीलियच्छि-उदारी ॥ मिसी-गिह-मट्टी ॥५॥ पहु ग्व पह-यन्धनो ॥६॥ महपण व मसी ॥७ जय सुटु भीसणो lil रवि व उग्ग-यो ।।५।। धत्ता सम्बाहरणु णरिन्दु सहि कसण-महग्गएं घडिज किह । उपणय-मोह-णिसषणु लक्खिाइ विशु-विलासु मिह ।।१०॥ [-] अप-जय-सारे सत्तु-स्त्रयाणणु। सौयह पासु पयट्टु दसाणणु ॥ १॥ बहुरुधिणि रूबरे मावन्तः । खणे वासरु खणे मिसि दावन्तउ॥२॥ खण चन्दिम खणे मेहन्धारउ । खणे वालि-लि-जलधारउ ॥३॥ षणे णिहाय-सडि-वडण-बमालिउ । खणे गय-घग्घ-सि-ओरालिट ॥४॥ खणे पाउसु हेमन्तु उन्हाउ। खणे गयण-यलु सयतु सम-आलउ ॥५ सणे महि-कम्पु महीहर-हल्लिर । स्वर्ण स्पणायर-सलिछल्लिज ॥६॥ तेहड णिपधि समि मुहिय। तियरंपपुछिप जणयहाँ दुहिष।।७।। 'एड महन्तु काई अचरिपड । किं फेण वि जगु उससहरिपउ' ॥४॥ घत्ता पमण तियाषि 'बहुरूपिणि-रूवाविव-तणु । श्रावह रूगगड पहु सङ बयशु मिजाकड दहषयम' ।।।

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