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तिसत्तरिमो संधि कीर्तिको सब ओर घुमाते हैं। उसे सोने और चाँदीकी थाली दी गयों, जो सत्पुरुषोंके चित्तोंकी भाँति विशाल थी। फिर रावणका थाल रखा गया, जो तरुण दिवाकरकी भाँति धमचमा रहा था, जो सरोवरको भाँति शतपत्रसे सहित था, जो नगर प्रवेशकी तरह बहुविध था, जो समुद्रकी भाँति सीप और शंखोंके समूहसे सहित था, जो उत्तम स्त्री समूहकी भांति कंची ( करधनी, कढ़ी) से युक्त था । इसप्रकार उसे तरह-तरह का अमृत भोजन दिया गया जो भरत ( मुनि) की तरह दूसरे-दूसरे महारसोंसे परिपूर्ण था॥ १-२॥
[६] कपूरसे सुवासित पानी पीकर और खाकर गजा रावण दूसरे निवासस्थानपर आकर बैठ गया। उसने अपनेआपको चन्दनसे अलंकृत किया। वह ऐसा लग रहा था जैसे भ्रमर गन्ध ग्रहण कर रहा हो ।फिर चार रंगका पान उसे दिया गया जो नटप्रदर्शनकी तरह रंग-बिरंगा था। फिर उसे अमूल्य वस्त्र दिये गये, जो जिनवचनों की भाँति दोनों लोकों में श्लाघनीय थे जो मलयदेशके मिथुनकी भाँति सुगन्धित थे, जो आधीरातकी भाँति घड़ियोंसे बँधे हुए थे, जो मुग्धांगनाओंके चित्तोंकी भाँति खिले हुए थे, जो दुष्टोंके दानकी भाँति क्षुब्ध करनेवाले थे। जो दुर्जनोंके वचनोंके समान लम्बे थे, जो गंगा नदीके किनारोंकी भाँति एकदम फैले हुए थे। जो वियोगिनीकी भाँति नाना कामावस्था वाले थे। जो वन्दीजनोंके समूहको भौति द्रव्यविहीन थे। तदनन्तर उसने मणियोंसे चमकते हुए आभूषण ग्रहण किये। वे गहने उसके श्याम शरीरपर ऐसे मालूम होते थे मानो कृष्णपझमें तारे चमक रहे हों ।।१-२॥
[७] उसके अनन्तर ऐरावत को भी मात देनेवाले त्रिजगभूषण हाथीको सजा दिया गया । अपनी सैंडसे, वह भौरोंकी