Book Title: Paumchariu Part 4
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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२१२
परमचरिड
दायहाँ दइउ ले ते दहया। पर निविहेण रेण तियमइया ||५|| धणिय धणेई अप्पु अवयारें। जाय जाइ पीअन्ती जारें ॥॥ फु वसुन्धार सहि मारि कुमारी। णा पर तापु अरिसे गारो ॥५॥
व सुरष जेम दमि विहाण सीय
वत्ता
धन्धेपिशु लक्खा रामु रणे । सञ्चा परिमुन्झमि जेम गणें ॥९॥
[१५] एम भागेपिणु गड णिय-गेहहाँ। भन्नेउरहों पहिय-णेहहाँ ।।१।। रायहमु ण हंसी-जूहहौं। गं गयवरु गणियारि-समूहहों।।२।। र्ण मयसक्छणु तारा-बन्दहौं। धुमगाउ लिपि-मयरन्दही ॥३॥ पणही पण पगवन्तउ । माणिगीड साई सम्माणन्त ॥धा रसगा-दामपहि वजन्ता । लीला-कमल हि ताजिनान्सड ॥५॥ एवं परिष्ट्रिउ गिसि-सम्मोर्गे । सिङ्गारंग विविड-विणिउम्र्गे ॥६॥ सीय चि गिय-जीवियही अगिट्टिय । ण दसपिरही सिरप्ति समुद्विय ॥७।। वाव पिणहाय पहिय महि कम्पिय । 'जट्ट लक' गई दंव पम्पिय ।।।
'दहसुइ मृढन का णरहि सुरबइ जेच
पत्ता
पर-णात रमन्तहाँ रुषणु सुहु । णिय-रज्जु सई भुञ्जन्तु तुहुँ' ॥९||

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