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सत्तस टिमो संधि [१५] दक्षिण दिशामें पहले द्वारपर दुर्धर धनुर्धारी नील स्थित था। दूसरे द्वारपर था- अपनी उत्तम लाठीसे भयंकर नल और हाथ में वन लिये हुए इन्द्र | तीसरे द्वारपर निशंक विभीषण, उसके हाथमें शूल था। चौथे द्वारपर यमके समान कुमुद, उसका शरीर कसे हुए दोनों तूणीरोंसे पीडित हो रहा था। मैंगने द्वारगर सार्थ जुटोज, जसके अधर काँप रहे थे और उसके हाथमें भाला था । छठे द्वारपर किष्किंधा नरेश था। उसके हाथमें भीषण भिण्डिमाल अस्त्र था। सातवें द्वारपर हाथमें तलवार लिये हुए भामण्डल था, मानो प्रलयकी आग ही भड़क उठी हो। इस प्रकार सुप्रीवने युद्ध में दुष्प्रवेश्य अट्ठाईस द्वार बना लिये। उस भयंकर विकट समयमें राम बार-बार रो रहे थे। बार-बार वह अपनी विशाल भुजाओंसे धरतीको पीट रहे थे ।।१-२॥